कांटी। मन के हारे हार है,मन के जीते जीत। इस प्रेरक पंक्ति के लेखक रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी शायरी को जिंदगी के करीब ले जाने वालों में से थे। उनकी शायरी में भारत के धरती की सुगंध है। भारतीय संस्कृति के मातृत्व का स्पर्श है। नूतन साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष चंदभूषण सिंह चंद्र ने फिराक गोरखपुरी की जयंती की पूर्व संध्या पर कांटी में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ये बातें कही। इस दौरान सेवानिवृत्त शिक्षक स्वराजलाल ठाकुर,प्रभात कुमार,मनोज मिश्रा ने भी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।सुनने के लिए ऊपर के ऑडियो पर क्लिक करें।