नमस्कार दोस्तों, कोरोना वायरस का कहर कम होता दिख रहा है, शहर और रास्ते फिर खुलने लगे हैं, लोग अपने काम पर वापस जाने की तैयारी में है. लेकिन इन सबके पीछे एक अहम मसला है...जो छूट रहा है! ये है ग्रामीण स्वास्थ्य की बदहाल व्यवस्था.. जिस पर बात करना इसलिए जरूरी है कि क्योंकि भारत की अधिकांश आबादी अभी भी गांवों में बसती है. जिनकी सेहत वहां के बदहाल प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र या फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर निर्भर है. कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा भयावह स्थिति ग्रामीण इलाकों में बनी. साथियों, हमें बताएं कि आपके गांव के सामुदायिक, प्राथमिक और उप स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति कैसी है? क्या वहां दवाएं, चिकित्सक और दूसरा मेडिकल स्टॉफ है? क्या इन केन्द्रों पर पर्याप्त बिस्तर, आॅक्सीजन सिलेंडर और दूसरे जरूरी उपकरण उपलब्ध हो रहे हैं? कोरोना काल के दौरान क्या इन स्वास्थ्य केन्द्रों पर गर्भवती महिलाओं, बच्चों और दूसरी बीमारियों से ग्रसित लोगों को इलाज मिल सका? क्या कोरोनाकाल के दौरान गांव में टीकाकरण का काम प्रभावित हुआ है?अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

साथियों, कोरोना संक्रमण ने देश के हर वर्ग को बुरी तरह प्रभावित किया है. लोग दवाओं और दुआओं दोनों की आस लिए हर रोज जागते हैं और इसी उम्मीद के साथ सोते हैं कि शायद कल सब कुछ ठीक हो जाए. आम जनता को कोरोना के इलाज में किस तरह की परेशनियां आ रहीं है, ये जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

बिहार राज्य के दानापुर जिले से दिलीप कुमार ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि उनकी बहन जमुई जिले के सोनो प्रखंड स्थित एक अस्पताल में भर्ती थी, तबियत ज़्यादा खराब होने की वजह से उनको जमुई जिला स्थित सरकारी अस्पताल में रेफर कर दिया गया। बताते है की सदर अस्पताल में मौके पर कोई भी डॉक्टर मौजूद नहीं था और मरीज की हालत गंभीर थी। फिर दिलीप ने बिहार मोबाइल वाणी के संवादाता रजनीश कुमार से बात की तथा उनके पहल से अस्पताल के सिविल सर्जन नौसाद अहमद से बात करने के बाद मरीज की जांचकी गई तथा निशुल्क ऑक्सीजन मुहैया करवाया गया अंत में मोबाइल वाणी के संवादाता की वजह से मरीज की जान बचा ली गई