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बिहार राज्य के मुंगेर जिला से विपिन कुमार ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि राज्य में संचालित निजी विद्यालय अब दूकान का रूप ले चुके है। प्रशासन की लापरवाही के कारण अभिभावक इन निजी विद्यालयों के हाथों लूटने को मज़बूर है। इन विद्यालयों में कभी एडमिशन के नाम पर तो कभी स्कुल की किताबो, तो कभी ड्रेस के नाम पर अभिभावकों से पैसे ऐंठते रहते है। बिहार राज्य के अनेक गरीब लोगो और अभिभावकगण को ध्यान में रखते हुए सरकार को गंभीर समस्या पर अतिशीघ्र ध्यान देना चाहिए।और ऐसी निजी विद्यालयों के संचालकों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी करवाई करनी चाहिए।

जिला जमुई प्रखंड सिकंदरा से विजय कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से जानकारी दे रहे है कि केंद्र सरकार की कैबिनेट मीटिंग में पांचवी से लेकर आठवीं कक्षा तक के बच्चों को फेल ना करने की नीति को ख़त्म करने की मंजूरी दे दी गयी है।ज़ाहिर है अब शिक्षा के अधिकार कानून में संशोधन किया जायेगा।केंद्र सरकार का यह फैसला सराहनीय है।क्योंकि विद्यार्थी अक्सर यह सोचते है की वे नहीं पढ़ेंगे तब भी पास हो ही जायेंगे।पर अब यह नहीं होगा विद्यार्थियों को पढ़ना होगा तभी वे सही मायने में तरक्की कर पाएंगे।हालाँकि सिर्फ इसी नीति के बुते देश में शिक्षा की तस्वीर ठीक नहीं हो सकती है।जब तक अच्छे शिक्षकों की कमी बनी रहेगी तब तक शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं होगी।बच्चों को फेल करे लेकिन देश का शैक्षणिक माहौल को भी बेहतर करे।इसके आलावा समान शिक्षा नीति पर भी जोर देने की जरुरत है

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जिला जमुई के सिकंदरा प्रखंड से विजय कुमार सिंह मोबाईल वाणी के माध्यम से कहते है कि शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण आज प्रखंड में जितने भी सरकारी और निजी उच्य विद्यालय स्थापित है वो सिर्फ डिग्रियां बाँटने का काम करती है।सरकार चोरी पर नकेल कसने को प्रतिबद्ध है ये अच्छी बात है लेकिन शिक्षण कार्य से शिक्षकों को कोई मतलब नहीं है।सरकार के गलत नीति के कारण आयोग शिक्षा नीति जनप्रतिनिधियों के माध्यम से अंको के आधार पर दिया गया जो शिक्षा व्यवस्था के नाम पर कलंक है।ऐसे शिक्षकों से बच्चे क्या उम्मीद कर सकते है जिन्हे खुद सिलेबस का ज्ञान नहीं है।वही सरकार द्वारा बार-बार बिहार के बच्चो को और उनके अभिवावकों को झूठा दिलासा देकर यह साबित करना चाहती है कि सरकार बिहार के बच्चो के शिक्षण विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था कर रही है परन्तु यह बात सच्चाई से काफी परे है।सरकार की ईच्छा के बावजूद बिहार की शिक्षा व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता है.बिहार के बच्चे निजी कोचिंगों और निजी विद्यालयों में अध्यन करके अपने प्रतिभा का परचम हर क्षेत्र में लहराते है जिसमे सरकार का कोई योगदान नहीं है।

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