मोबाइल वाणी में राजीव की डायरी 'बिना व्यवस्था के स्कूल' समाज और देश के लिए एक अहम् मुद्दा है. जिस पर इन्होंने ध्यान आकृष्ट कराया है. चुंकि चतुर्दिक विकास के लिए गुणवत्ता युक्त शिक्षा अनिवार्य है और इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए सरकार भी कटिबद्ध है. पर कहीं न कहीं चूक हो रही है. आज भी सरकारी स्कूलों में बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करना त्रास दी बना हुआ है. जहां एक ओर सरकार शिक्षा के नाम पर पानी की तरह पैसे बहा रही है पर वहीं निष्ठा, व्यवस्था व सही निगरानी के अभाव में उपलब्धियों का स्तर काफी निम्न है. अनेकों बार  कई तरह की आकलन परीक्षा आयोजित कर सिर्फ कोरम पूरा किया जाता है और वार्षिक परीक्षा में भी एक निर्देश के अनुसार  मन गढंत ग्रेड दे कर बच्चों को उत्तीर्ण कर दिए जाते हैं. रिपोर्ट व आंकड़ा सरकार को भेज दिया जाता है. पर जमीनी स्तर के  गुणवत्ता पर न तो शिक्षक और न सरकार का ध्यान रहता है. और तो और अभिभावक भी बेखबर रहते हैं. जनप्रतिनिधि को होश ही नहीं रहता कि सरकारी संस्थानों का  निरीक्षण कर सुचारु रूप से चलाने का काम करें. शिक्षा के अधिकार के तहत प्रत्येक बच्चा को हर तरह की सुविधाएँ कराना है जिसका मात्र खाना पूरी से काम चल रहा है. कतिपय विद्यालयों में शुद्ध पेय जल, शौचालय, खेल मैदान, बाउंड्री, साफ सफाई व बागवानी का अभाव, गुणवत्ता युक्त माध्याहन भोजन न होना, समय पर पुस्तक उपलब्ध न होना, पाठ योजना के तहत पढ़ाई न होना  सहित विद्यालय संचालन व प्रबंधन न होना आज की बड़ी समस्याएं हैं. जिसकी निराकरण करना मृग तृष्णा बनी हुई है. जिसमें पंचायत प्राधिकार, जनप्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी, शिक्षक व अभिभावक गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं. सभी अपना दिन काट रहे हैं, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओं, गुणवत्ता युक्त शिक्षा, राष्ट्र निर्माता कहलाने में कहीं न कहीं भूल हो रही है. आखिर क्यों ? कब तक ? इन सवालों का जवाब संबंधित लोगों से पूछने की जरुरत है, क्योंकि बोलेंगे तो बदलेगा. इस विषय पर चुप्पी छोड़ मुखर व प्रखर होने की आवश्यकता है. धन्यवाद.