बिहार राज्य के समस्तीपुर जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता दीपक कुमार ने जीवक सादा से साक्षात्कार लिया जिसमें उन्होंने बताया कि उनका एक न्यायलय से संबधित विवाद है। पूर्वजों के समय से जमीन को लेकर मुकदमा चल रहा है।हमारे जमीन पर जमींदारों के द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया है।इस मामले में उन्होंने अपने बुजुर्गों के समय के कुछ लोगों से सलाह लिया। इस दौरान उन्हें जानकारी प्राप्त हुई की यह जमीन उनके पूर्वजों की ही है। लेकिन दबंगता के कारण उस जमीन पर कब्ज़ा कर लिया गया है। कुछ लोगों ने उस जमीन के कागजात भी देखे हैं।उनसे सलाह लेने का उद्देश्य ही यह था की सच की जानकारी हो जिसके आधार पर आगे कार्रवाई की जा सके।यह कागजात कैथी भाषा में लिखा हुआ था। जिसका मैंने हिंदी में अनुवाद करवाया था। जिससे मुझे पता चला की यह जमीन हमारी ही है। अब अनुवाद का कार्य भी बहुत मुश्किल हो गया है। समस्तीपुर जिला उनके प्रखंड से दस किलोमीटर दूर है।इतनी दूर जा कर ही अब अनुवाद का कार्य करवाया जा सकता है। गाँव में ऐसा कोई भी नहीं है,जिसे कैथी भाषा आती हो।खतियान सभी के पास उपलब्ध नहीं होता है।कुछ ही लोगों के पास खतियान रहता है।किसी भी जमीन के खतियान के लिए दरभंगा जाना पड़ता है।वहाँ मुंशी से सलाह लेते हैं की यह कार्य किससे करवाना सही होगा। इसके बाद दूसरे मुंशी से मिल कर कागजात चेक करवाते हैं और फिर वंशावली मिलान करते हैं।इसके बाद जमीन मालिक से पूछा जाता है,तब खतियान बनता है। इस कार्य में भी एक माह से ज्यादा का समय लगता है।इसके साथ ही बार-बार जाना भी पड़ता है। जिसके कारण काफी समय और पैसे लग जाते हैं।खतियान बनने के बाद अंचल में आवेदन कर मैंने रसीद काटने की अपील की।यहाँ भी पैसों की माँग की जाती है। जिसके कारण इस जमीन की रसीद मुझे नहीं मिली। विपक्षी पार्टी ने प्रशासन बुला कर जमीन पर अपना अधिकार बताया। जिसके बाद थाना प्रभारी ने दोनों पक्षों से कागजात ले कर कोर्ट को भेज दिया।जिसके बाद हमने इस जमीन पर घर बना लिया।इसके बाद प्रशासन ने जमीन खाली करने को कहा। जब हमने इंकार किया तो मुंशी द्वारा नोटिस दिया गया।मुंशी ने बताया की धारा 144 और 107 लगा दिया गया है।इस धारा की जानकारी हमें वकील से मिली की इसमें क्या होता है। नोटिस के 10 दिनों के अंदर कोर्ट के समक्ष उपस्थित होना था। इसके बाद मैंने गाँव के कुछ बुद्धिजीवियों के साथ कोर्ट जाने का निर्णय लिया जिन्हें कोर्ट के मामलों जानकारी थी।वकील की बातें समझ नहीं आती इसलिए मैंने ग्रामीणों का सहयोग लिया। वकील से मिलने के बाद जानकारी मिली की आपको सात लोगों का बेल करवाना होगा। इसके साथ ही धारा 107 की तारीख चलेगी। तीन हजार रूपये पर वकील काम करने को सहमत हुए। जिसके बाद मैंने ब्याज पर कर्ज ले कर उन्हें पैसा दिया।वकील ने बताया की आपके कागजात सही हैं। विपक्ष के कागजात फर्जी होने की बात कही गई।वकील से मैंने अपने जमीन के बारे में पूछा तो बताया की इसके लिए मुकदमा लड़ना होगा। इसके साथ ही खर्च भी लगेगा। जिसके कारण मैं पीछे हट गया।वकील और जज के दरमियान जो भी बातें होती है वो हमारे समझ के बाहर की बात है।हमारे पास इतना समय नहीं हो पाता है की इन सब बातों पर विस्तृत जानकारी ले सकें। मजदूरी करना भी जरुरी होता है क्योंकि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हैं। बेल होने के बाद वकील तारीख पर नहीं बुलाते हैं। 15 दिन या एक महीने पर वकील को कुछ पैसे दे देते हैं। वकील ही आगे का काम देख रहे हैं।अगर कोर्ट से जुड़े मामले ऑनलाइन हो जाये और मुकदमों की जानकारी भी ऑनलाइन मिले तो समय के साथ पैसों की भी बचत होगी