विजय कुमार सिंह,जिला जमुई के सिकंदरा प्रखंड से मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि शिक्षा विभाग के आंकड़े के अनुसार जिले में प्राथमिक से लेकर हायर सेकेंडरी तक कुल सत्रह सौ चार विद्यालय संचालित है जिनमें चार लाख आठ हजार दो सौ पैतालीस बच्चे शिक्षा ग्रहण करते है लेकिन इनमें कई विद्यालयों के भवन स्वीकृत नहीं होने के कारण झोपड़ियों या शेडो में संचालित हो रही है।यहाँ की व्यवस्था कैसी होगी यह तय करने की जरुरत तो नहीं है लेकिन इन केन्द्रो में अभी भी पढ़ाई जारी है।शिक्षा विभाग प्रतिवर्ष शिक्षा के नाम पर करोड़ो रूपये खर्च करते है लेकिन उसका आंशिक असर धरातल पर देखने को नहीं मिलता है।वही अगर सर्व शिक्षा अभियान के आंकड़े के अनुसार देखा जाये तो इस वित्तीय वर्ष में शिक्षकों के मानदेय हेतु पांच करोड़ पैतालीस लाख तथा विद्यालय भवन को छोड़कर सिर्फ प्राथमिक विद्यालय और मध्य विद्यालय के विकास अनुदान हेतु इस वित्तीय वर्ष में चौदह लाख चालीस हजार तथा रख-रखाव एवं मरम्मति अनुदान के रूप में उनीस लाख पैंतीस हजार आबंटित किये गए है परन्तु उच्य विद्यालय आज भी भवन का रोना रो रहे है।वही एक ओर माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत मॉडल स्कूल खोले जाने की बात हो रही है तो वही दूसरी ओर एक विद्यालय को अपना भवन भी नसीब नहीं है।
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रामनरेश ठाकुर,जिला मधुबनी के साहरघाट से मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि मधवापुर प्रखंड में सर्व शिक्षा अभियान कागज़ पर ही चल रहा है।मधवापुर प्रखंड में सर्व शिक्षा अभियान के तहत पठन-पाठन के लिए न तो कोई भवन बना हुआ है और न ही शिक्षकों की बहाली की गई है।अभियान के तहत बच्चो के लिए किताबें आती है लेकिन समय से नहीं मिल पाती है।इस अभियान के तहत शौचालय तथा पेयजल की व्यवस्था की जाती है लेकिन छह महीने से अधिक नहीं चल पाता है।वही शिक्षकों द्वारा शौचालयों की साफ़-सफाई एवं पेयजल की मरम्मतों पर ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि बच्चों के लिए यह सबसे मूल आवश्यकता है क्योकि जल ही जीवन है।वही छात्रों के-खेलने कूदने के लिए बहुत सारी सामग्री आती है लेकिन उस सामानों को शिक्षकों के बच्चों द्वारा खेला जाता है जिसकारण स्कूल के छात्रों को देखने के लिए भी नहीं मिल पाता है।इसलिए सरकार को सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत अलग से पठन-पाठन के लिए भवन बनानी चाहिए और शिक्षकों की बहाली करनी चाहिए।
बिहार के जिला जमुई,प्रखण्ड सिकंदरा से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद भी अभी तक पुरे प्रदेश में कुल दो हजार पचास शिक्षकों ने अपने मन से त्याग पत्र दिया।ज बकि सूबे में कुलमिलाकर 40 प्रतिशत फर्जी शिक्षक कर्यरत है।और प्रतिमाह करोड़ो का राजस्व उनके वेतन पर खर्च हो रहा है। शिक्षा विभाग की गलत नीतियों के कारण ही इस तरह की गलत नीतियाँ इस विभाग में होती रहती है। और पदाधिकारी इस बात को नजरअंदाज करते रहते है। इस तरह के क्रियाकलाप में दण्ड के भागी केवल शिक्षक बनते है जो की निंदनीय है।दण्ड उस पदाधिकारियों को भी मिलनी चाहिए जो शीर्ष पदों पर बैठे हुए है। सरकार की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा विभाग में वैसे शिक्षकों की भर्ती कर दी गयी है जो शिक्षक की मर्यादा को तार-तार कर रहे है।शिक्षक और छात्र के बीच की मर्यादा समाप्त हो गयी है।पढ़ाई की व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी है।विद्यालय केवल प्रोत्साहन राशि और मिड डे मिल का जरिया बन कर रह गयी है। सरकार शिक्षकों की हड़ताल से अपनी कुर्सी को बचाने के लिए वेतनमान देकर अपना पिंड छुड़ाती है।इससे शिक्षा का कभी भला नहीं हो सकता। यही कारण है की बिहार के जो बच्चे सरकारी विद्यालयों में पठन-पाठन करते है वो अन्य निजी विद्यालयों के बच्चों से लगातार पिछड़ रहे है।
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रामनरेश ठाकुर,जिला मधुबनी के साहरघाट से मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि मधवापुर प्रखंड में सर्व शिक्षा अभियान कागज़ पर ही चल रहा है।मधवापुर प्रखंड में सर्व शिक्षा अभियान के तहत पठन-पाठन के लिए न तो कोई भवन बना हुआ है और न ही शिक्षकों की बहाली की गई है।अभियान के तहत बच्चो के लिए किताबें आती है लेकिन समय से नहीं मिल पाती है।इस अभियान के तहत शौचालय तथा पेयजल की व्यवस्था की जाती है लेकिन छह महीने से अधिक नहीं चल पाता है।वही शिक्षकों द्वारा शौचालयों की साफ़-सफाई एवं पेयजल की मरम्मतों पर ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि बच्चों के लिए यह सबसे मूल आवश्यकता है क्योकि जल ही जीवन है।वही छात्रों के-खेलने कूदने के लिए बहुत सारी सामग्री आती है लेकिन उस सामानों को शिक्षकों के बच्चों द्वारा खेला जाता है जिसकारण स्कूल के छात्रों को देखने के लिए भी नहीं मिल पाता है।इसलिए सरकार को सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत अलग से पठन-पाठन के लिए भवन बनानी चाहिए और शिक्षकों की बहाली करनी चाहिए।
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जिला मधुबनी से चंदू जी मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि मधुबनी जिले में साक्षरता मिशन,आंगनबाड़ी केंद्र ,प्राथमिक विद्यालयों की सच्चाई इस प्रकार है।साक्षरता मिशन में कागज़ी खानापूर्ती की जाती है।साक्षरता मिशन में कागजों का स्थान तो है पर साक्षरता का स्थान नहीं है।आंगनबाड़ी केंद्र भवन के आभाव में निजी या भाड़े के मकान में चलती है।कई प्रखंडों में पठन-पाठन खुले आसमान के नीचे पेड़ की छाया में चलती है।इस संबंध में सरकार द्वारा दी जानेवाली राशि का जमकर बंदरबांट किया जाता है।कई प्रखंडों में खपरैल और घास-फूस के मकान में पठन-पाठन चलता है।सरकारी जमीन की कमी नहीं है ,वरण सरकारी अधिकारी की कार्यशैली में कमी है।अर्थात की भरपूर रिश्वत ना मिलने के कारण इन समस्याओं का समाधान नहीं किया जा रहा है।शिक्षा के सभी केन्द्रो में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच चूका है।सरकार अपटुडेट फाइलों को प्राथमिकता देती है और जमीनी सच्चाई को नहीं देखती है
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