मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

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रंजना कुमारी

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बिहार राज्य के मधुबनी जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता सुकन्या ने शबाना खातुन से साक्षात्कार लिया जिसमें उन्होंने बताया कि बारिश नहीं होने से धान की खेती नहीं हो पाई।जिसके कारण परिवार के भरण-पोषण में काफी परेशानी हो रही है। समूह से लिया हुए पैसे भी वापस नहीं कर पाये हैं। फसल खराब होने के कारण हमें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है।अब परिस्थिति ऐसी हो गई है की अपने दोनों बेटों की पढ़ाई छुड़वा कर, उन्हें काम करने के लिए गाँव से बाहर भेजना पड़ा है। जिससे कुछ कमाई हो सके और घर चल सके