अधेड़ों- बुजुर्गों की बीमारी माने जाने वाले हाईपरटेंशन की जद में अब किशोर और युवा आने लगे हैं। विशेषकर जब से कोरोना ने दस्तक दे दी है, तब से युवाओं व किशोरों में हाई बीपी की बीमारी हाईपरटेंशन बढ़ने लगा है। अर्नव हॉस्पिटल जीवधारा डॉ. अभिषेक बताते हैं कि मेडिसिन के ओपीडी से लेकर इंडोर में मिलने वाले कुल व्यस्क हाई बीपी के मरीजों में से सात प्रतिशत किशोर व 13 प्रतिशत युवा हाईपरटेंशन की चपेट में मिल रहे हैं। किशोरों का आशय 13 साल से 17 साल के बीच और युवाओं का आशय 18 से 25 साल के बीच की उम्र है। आंकड़ों की बात करें तो पुरुषों की तुलना में तेजी से महिलाओं को हाई बीपी की बीमारी बढ़ रही है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ें बताते हैं कि साल 2015-16 से लेकर साल 2019-20 के बीच जिले में पुरुषों (1.4 प्रतिशत) की तुलना में हाईपरटेंशन की शिकार महिलाओं की संख्या (3.9 प्रतिशत) में ज्यादा इजाफा हुआ। एनएफएचएस-5 के अनुसार, साल 2015-16 में जहां जिले में हाईपरटेंशन की शिकार (140/90 या इससे अधिक) महिलाओं की संख्या 9.4 प्रतिशत थी, वह साल 2019-20 में बढ़कर 13.3 प्रतिशत हो गयी। वहीं साल 2015-16 में जहां बीपी के शिकार (140/90 या इससे अधिक) पुरुषों की संख्या 11.2 प्रतिशत थी, वह साल 2019-20 तक बढ़कर 14.7 प्रतिशत पर पहुंच गयी। जिस तरह से साल 2019-20 तक पहुंचते-पहुंचते हाईपरटेंशन के शिकार पुरुषों (14.7 प्रतिशत) के नजदीक हाईपरटेंशन की शिकार महिलाओं की संख्या (13.3 प्रतिशत) पहुंच गयी थी। इस तरह से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन तीन सालों में हाई बीपी की शिकार महिलाओं की संख्या पुरुषों के बराबर हो चुकी होगी।