आंख में तेजी से बढ़ रही गुलकोमा की बीमारी को लेकर राज्य सरकार ने एक सप्ताह तक कैम्प लगा कर गुलकोमा की जांच करने का निर्देश जारी किया है। इसको लेकर प्रचार प्रसार करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही कैम्प में लोगों के नेत्र जांच की रिपोर्ट भी मीडिया में प्रकाशित खबर और वीडियो ग्राफी कर भेजने का निर्देश जारी किया है। जांच के दौरान गुलकोमा के मरीज मिलने पर जिला मुख्यालय रेफर करने का निर्देश दिया गया है। मिली जानकारी के अनुसार जिला में करीब 30 प्रतिशत लोगों के आंख में गुलकोमा रोग है।मगर जानकरी के अभाव में गुलकोमा का प्रथम चरण में इलाज नहीं कराने से आंख की रोशनी समाप्त हो जाती है जो फिर वापस नहीं होती ।इसलिये इसके लक्षण की जाजकारी स्कूल से लेकर गांव तक देना जरुरी हो गया है। खास कर मधुमेह के रोगी, 50 से अधिक उम्र वाले व बच्चे जो आंख की रोगी हैं। इस सम्बंध में जिला के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ मेजर एबी सिंह बताते हैं कि गुलकोमा के आंख का एक साइलेंट किलर के रुप में जाना जाता है। इस बीमारी से आंख में कोई दर्द नहीं होता है। धीरे धीरे रोशनी कम होने लगती है तब लोग डॉक्टर के पास आते हैं। बताया कि सामान्य लोगों के आंख से लोग सामने भी देखते हैं और अगल बगल के लोग को भी देखते हैं। जिसको गुलकोमा होगा वह व्यक्ति अगल बगल नहीं देख पायेगा। सामने ही देख पाता है। इसके अलावा इंद्र धनुष की तरह दिखाई देता है। इसलिये जरूरी है आंख के टेंशन की स्क्रीन की जांच हो। बताया कि मधुमेह की मरीज ब्लड प्रेशर के मरीज के अलावा 40 प्लस के लोगों को आंख के टेंशन की जांच कराते रहना चाहिये। बताया कि जिला में आंख के रोगी में 30 परसेंट गुलकोमा के लक्षण पाये जा रहे हैं। इसलिय इलाज जरूरी है। नहीं तो बाद में दिक्कत हो सकती है। इसकी दवा ड्रॉप व मेडिसिन भी है। इमरजेंसी में सर्जरी की जाती है।