2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।
महंगाई और भ्रूण हत्या के बीच गहरा संबंध है। आज के समय में लोग बच्चों की अच्छी परवरिश करना चाहते हैं। लेकिन बढ़ती महंगाई के कारण लोग सक्षम नहीं होते हैं। जिसके कारण दहेज़ और भविष्य में आने वाली कठिनाईयों का सोच कर लोग बेटी को जन्म के पहले ही गर्भ में मार डालते हैं
एडीआर संस्था ने अपनी एक और रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में राजनीतिक पार्टियों की कमाई और खर्च का उल्लेख है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे राजनीतिक पार्टियां अपने विस्तार और सत्ता में बने रहने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सत्ता धारी दल ने बीते वित्तीय वर्ष में बेहिसाब कमाई की और इसी तरह खर्च भी किया। इस रिपोर्ट में 6 पार्टियों की आय और व्यय के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई एम और बीएसपी और एनपीईपी शामिल हैं। दोस्तों, *---- आपको क्या लगता है, कि चुनाव लडने पर केवल राजनीतिक दलों की महत्ता कितनी जरूरी है, या फिर आम आदमी की भूमिका भी इसमें होनी चाहिए? *---- चुनाव आयोग द्वारा लगाई गई खर्च की सीमा के दायेंरें में राजनीतिक दलों को भी लाना चाहिए? *---- सक्रिय लोकतंत्र में आम जनता को केवल वोट देने तक ही क्यों महदूद रखा जाए?
देश के किसान एक बार फिर नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले साल नवंबर 2020 में किसानों ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के रद्द करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था और इसके बाद अगले साल 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए थे, हालांकि इस दौरान करीब सात सौ किसानों की मौत हो चुकी थी। उस समय सरकार ने किसानों की कुछ मांगों पर विचार करने और उन्हें जल्दी पूरा करने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हआ है। और यही वजह है कि किसान एक बार फिर नाराज़ हैं।
जनपद प्रतापगढ़ के रानीगंज क्षेत्र के ग्राम सभा रहेटुआ परसरामपुर में आंवला किसान के चेहरे पर दिखी नयी मुस्कान आपको बता दे कि पिछले वर्ष अप्रैल के महीने मे बारिश एवं ओलावृष्टि के कारण इस बार आंवले की फसल का बहुत भारी नुकशान हो गया था, जिससे किसानों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। और पिछले महीने में आंवले का भाव बाजार में बहुत कम था,लेकिन जनवरी माह मे आंवले का भाव बढ़ने से खुशी का महौल है,आईये जानते हैं, उन्हीं किसान की जुबानी क्या आंवले की कहानी,
एक सामान्य समझ है कि कानून और व्यवस्था जनता की भलाई के लिए बनाई जाती है और उम्मीद की जाती है कि जनता उनका पालन करेगी, और इनको तोड़ने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। इसके उलट भारतीय न्याय संहिता में किये गये हालिया बदलाव जनता के विरोध में राज्य और पुलिस को ज्यादा अधिकार देते हैं, जिससे आभाष होता है कि सरकार की नजर में हर मसले पर दोषी और पुलिस और कानून पूरी तरह से सही हैं।
सब्जी विक्रेता और सब्जी खरीदने वालों की निकल रहे हैं आंसू
Transcript Unavailable.
जनपद प्रतापगढ़ के रानीगंज क्षेत्र के ग्राम सभा सिलौधी में किसानों के खेतो तक बिजली की व्यवस्था न होने से किसानों को पम्पिंगसेट से सिचाई करना पड़ रहा है, जिससे किसानों को 93 रुपए लीटर का डीजल खरीद कर सिचाई करना पड़ रहा है, सिलौधी ग्राम सभा के एक किसान रामपाल पाल ने बताया कि, हम लोगों के खेतो तक बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है, और हम लोगों को पम्पिंगसेट से सिचाई करना पड़ता है। डीजल की बढ़ी कीमत ने पहले से ही किसानों की कमर तोड़ रखी है, ऊपर से हम लोगों के खेतो तक बिजली की व्यवस्था न होने के कारण हमको डीजल खरीद कर सिचाई करने में बहुत महगा पड़ता है। अगर ऐसे ही रहा तो किसानों को खेती करना बंद कर देगा, किसान इतनी मेनहत करके फसल को उगाता है, लेकिन खेती करने लिए सिचाई सबसे महगी है, ऊपर से कहीं नील गाय आवारा पशुओं से अपनी फसल को बचा पाना बहुत मुश्किल होता है।
लोग हैं खासा परेशान