कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की स्वीकारोकती के बाद सवाल उठता है, कि भारत की जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? इतनी जल्दबाजी मंजूरी देने के क्या कारण था, क्या उन्होंने किसी दवाब का सामना करना पड़ रहा था, या फिर केवल भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है। जिसके लिए फार्मा कंपनियां अक्सर कटघरे में रहती हैं? मसला केवल कोविशील्ड का नहीं है, फार्मा कंपनियों को लेकर अक्सर शिकायतें आती रहती हैं, उसके बाद भी जांच एजेंसियां कोई ठोस कारवाई क्यों नहीं करती हैं?

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।

एडीआर संस्था ने अपनी एक और रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में राजनीतिक पार्टियों की कमाई और खर्च का उल्लेख है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे राजनीतिक पार्टियां अपने विस्तार और सत्ता में बने रहने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सत्ता धारी दल ने बीते वित्तीय वर्ष में बेहिसाब कमाई की और इसी तरह खर्च भी किया। इस रिपोर्ट में 6 पार्टियों की आय और व्यय के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई एम और बीएसपी और एनपीईपी शामिल हैं। दोस्तों, *---- आपको क्या लगता है, कि चुनाव लडने पर केवल राजनीतिक दलों की महत्ता कितनी जरूरी है, या फिर आम आदमी की भूमिका भी इसमें होनी चाहिए? *---- चुनाव आयोग द्वारा लगाई गई खर्च की सीमा के दायेंरें में राजनीतिक दलों को भी लाना चाहिए? *---- सक्रिय लोकतंत्र में आम जनता को केवल वोट देने तक ही क्यों महदूद रखा जाए?

तमाम गैर सरकारी रिपोर्टों के अनुसार इस समय देश में बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर है। वहीं सरकारें हर छोटी मोटी भर्ती प्रक्रिया में सफल हुए उम्मीदवारों को नियुक्त पत्र देने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन कर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों को भी आमंत्रित कर रही हैं, जिससे की बताया जा सके कि युवाओं को रोजगार उनकी पार्टी की सरकार होने की वजह से मिल रहा है।

मानपुर गौरा गांव में हुए भ्रष्टाचार पर जांच के आदेश। ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत अधिकारी और पंचायत सहायक पर लगा था आरोप। ग्राम पंचायत अधिकारी प्रियंका देवी की मिलीभगत से पैसे निकाले गए। ग्राम प्रधान और प्रधान के बेटे के अकॉउंट में पैसे ट्रांसफर किए गए। नियम के विरुद्ध पैसे ट्रांसफर करने की हुई थी शिकायत। दर्जनों से अधिक कार्य दिखा कर प्रधान ने पैसे लिए। सिराथू ब्लॉक के ग्राम मानपुर गौरा गांव का मामला

उत्तरप्रदेश राज्य के कौशाम्बी ज़िला से हमारे श्रोता ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा सड़कों का जाल बुना जा रहा है लेकिन इसके निर्माण की गुणवत्ता को लेकर अधिकारी बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।जिसकी वजह से बनने के 3 महीने के अंदर ही सड़क भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। जिसकी वजह से अब स्थानीय ग्रामीण भी सड़क की गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। महज तीन माह के अंदर ही उखड़ने लगी है तो ऐसे में यह सड़क कितने दिन तक चलने योग्य रहेगी।

कौशाम्बी जिले में योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को नगर पंचायत चरवा प्रशासन पलीता लगा रहा है,नगर पंचायत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है,नगर पंचायत में भ्रष्टाचार की शिकायत सभासदों ने कई बार अध्यक्ष और अधिशाषी अधिकारी से की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई,जिसके बाद शुक्रवार को सभासद दर्जनों ग्रामीणों के साथ डीएम कार्यालय पहुंचे और प्रदर्शन कर शिकायत डीएम सुजीत कुमार से की है,डीएम ने शिकायतकर्ताओं को जांच कर कार्यवाई का आश्वासन दिया है।

सिराथू ब्लॉक में लाखों का भ्रष्टाचार आया सामने। ग्राम पंचायत अधिकारी, पंचायत सहायक और प्रधान पर आरोप। बिना कार्य कराये सरकारी रुपए का बंदरबाट का आरोप। ग्राम पंचायत अधिकारी प्रियंका देवी की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का आरोप । ग्राम प्रधान व प्रधान के बेटे के अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किए गए।