शिव धनुष के खंडन से क्रोधित हुए भगवान् परशुराम फतेहपुर। कस्बा क्षेत्र के बरिगवां गांव में चल रही 151वीं रामलीला में विशाल धनुष यज्ञ का मंचन किया गया। धनुष टूटते जय श्री राम के नारे मिथिला में लगाए गए। धनुष टूटने की आवाज तपस्या में लीन भगवान परशुराम के कानों में जैसे ही पड़ी तो मन के वेग से जनकपुरी मिथिला पहुंच गए और राजा जनक से पूछने लगे की भगवान शिव का धनुष किसने तोडा। फिर क्या था वहां पर बैठे राजा और जनकपुरी के निवासियों की आवाज भय के कारण बंद हो गई और किसी का भी साहस ना हुआ की कोई परशुराम जी को यह बता सके की धनुष किसने तोड़ा। तब राजकुमार लक्ष्मण ने परशुराम जी से पूछा की एक धनुष ही तो टूटा है इसमें इतना क्रोध ही क्या हो सकता है बचपन से लेकर अब तक तो हमने न जाने कितने धनुष तोड़े होंगे आज तक तो किसी को क्रोध नहीं आया आखिर धनुष में क्या है कि आप इतना क्रोधित हो उठे आखिर है तो धनुष ही, परशुराम जी ने विश्वामित्र जी से पूछा कि इन बालकों का परिचय दो, तब विश्वामित्र जी ने बताया कि दशरथ नंदन राम और लक्ष्मण है। परशुराम और लक्ष्मण संवाद में लक्ष्मण के प्रश्न किया कि ब्राह्मण को तप का बल होता है, आपके अंदर इतना क्रोध शोभा नहीं देता है। प्रश्न का उत्तर देते हुए परशुराम जी ने कहा कि ब्राह्मण के अंदर तप के बल के साथ बुध्दिबल भी होता है और इसे अधिक मेरे अंदर मनोबल भी है। जिस व्यक्ति के अंदर मनोबल होता है वह व्यक्ति कभी भी अपने जीवन में निराश नहीं हो सकता है। परशुराम और लक्ष्मण संवाद बहुत ही मनमोहक और ज्ञान वर्धक रहा। इस मौके पर भईयाजी अवस्थी, पूर्व ब्लाक प्रमुख जगदीश सिंह पटेल, बहाउद्दीन सिद्दीकी, छोटे लाल यादव, दिनेश दीक्षित, रिंकू अनुरागी, चंद्रपाल वर्मा, सुशील अवस्थी , ताहिर सिद्दीकी, राजन तिवारी आशु दीक्षित, सरोज मास्टर व लाल गुप्ता आदि लोग मौजूद रहे।