गर्मी की चुनौतियां और समाधान, गर्मी से उत्पन्न समस्याओं और उनके समाधान की जानकारी। स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए व्यावहारिक सुझाव।
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिल देव शर्मा मूंग, उड़द, भिंडी, लोबिया आदि फसलों में कीट के बारे में जानकारी दे रहे हैं । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें
दोस्तों नई सरकार का गठन हो गया है। ऐसे में सरकार से आपकी क्या अपेक्षाए हैं, क्या आपको भी लगता है कि लोकतंत्र के संस्थानों के उनके नियमों के अनुसार ही काम करना चाहिए या सरकार का रुख ठीक है कि वह चुनकर सत्ता में आए हैं, तो अब उनकी मर्जी है कि वे कैसे चलाते हैं। इस मसले पर अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाईलवाणी पर
मानव जीवन में डॉक्टर्स की भूमिका बहुत खास है। उन्हें भगवान से कम नहीं समझा जाता है। क्योंकि भगवान की तरह डॉक्टर भी एक व्यक्ति को नया जीवन देने में भूमिका निभाते हैं। छोटी-छोटी से समस्या हो या गंभीर बीमारी, डॉक्टर ही एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास मानव शरीर की सभी परेशानियों का उपचार है।एक जुलाई को ही डॉक्टर दिवस मनाने की एक खास वजह भी है. महान चिकित्सक डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय का जन्मदिन 1 जुलाई 1882 को हुआ था. इतना ही नहीं एक जुलाई 1962 को ही डॉ बिधान का निधन हुआ था. इसलिए तब से डॉक्टर को सम्मान देने के रूप में हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। साथ ही हमारे देश में स्वास्थ्य को एक सेवा के रूप में देखा जाता है और हमारे चिकित्सा पेशेवरों ने अथक और निस्वार्थ भाव से काम करके अपने देश की सेवा भाव एवं सेवा परमो धर्म की परंपरा का पालन किया है. यही एकमात्र कारण था कि हमारे कोविड योद्धा मौके पर खड़े हुए और निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य का पालन किया.तो आइये दोस्तों हम सब मिलकर चिकित्सक के कार्य की सराहना और मानव जीवन में उनकी भूमिका का सम्मान करें। मोबाइल वाणी की ओर से आप सब को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस की हार्दिक बधाई।
उत्तरप्रदेश राज्य के हरदोई ज़िला से अनुराग ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि भारतीय समाज में लैंगिक असमानता के पीछे धार्मिक व सामाजिक परम्पराएं हैं, जिनका पालन हमारा समाज सदियों से करता आ रहा है । लड़कियों की अपेक्षा लड़को की शिक्षा पर हमारे समाज द्वारा अभी तक ध्यान दिया जाता था, शिक्षा के मामले में लड़कियां पीछे रह जाती थी, या उन्हें जान बूझकर पीछे रखा जाता था । इसके पीछे भारतीय समाज की दकियानूसी सोच ही थी। अक्सर हम सुनते आए थे कि लड़की है बड़ी होकर शादी के बाद घर में चूल्हा चौका ही करना हैं। इसी सोच के चलते लड़कियां शिक्षा से वंचित रही, लिहाजा उनमें जागरूकता की कमी हो गई। हालांकि आज के बदलते समय में लड़कियों को अब शिक्षा से बड़े पैमाने पर जोड़ा जा रहा हैं। लेकिन जागरूकता की कमी के चलते महिलाएं अपने अधिकार व समानता से वंचित रह गई हैं। समाज में जो मानदंड बनाये गए उसके अनुसार महिलाओं को पुरुषों के अधीन रहना चाहिए। समाज को चाहिए कि वह दकियानूसी सोच से बाहर निकले साथ ही लड़कियों को शत प्रतिशत शिक्षा के साथ अन्य अधिकार भी मुहैया कराए। लैंगिक असमानता न केवल महिलाओं के विकास में बाधा पहुंचाती हैं, बल्कि राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक विकास को भी प्रभावित करती हैं। स्त्रियों को समाज में उचित स्थान न मिले तो देश पिछड़ेपन का शिकार हो सकता हैं। लैंगिक समानता के लिए ग्रामीण इलाकों में परम्पराओं में बदलाव की नितांत आवश्यकता है।
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के अंतर्गत कृषि विशेषज्ञ जीव दास साहू , रागी यानि मड़ुवा फसल की जानकारी दे रहे हैं। रागी फसल से जुड़ी कुछ बातें किसानों को ध्यान में रखना ज़रूरी है। इसकी पूरी जानकारी सुनने के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिल देव शर्मा पौधों में आयरन की कमी और अधिकता के लक्षण के बारे में जानकारी दे रहे हैं । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें
उत्तर प्रदेश राज्य के हरदोई जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता अनुराग गुप्ता ने जानकारी दी कि आज के आधुनिक युग में जब हम लड़के और लड़कियों में भेदभाव नहीं करने का दावा करते हैं, ऐसे में भूमि अधिकार महिलाओं के लिए भी उतने ही जरूरी हैं, जितने की पुरुषों के लिए । आज हम जिस समाज में रहते हैं यहां अचल संपत्ति के रूप में जमीन अधिकार की बात सामने आती है, लेकिन जमीन अधिकार बड़े अनुपात में आज भी पुरुषों के पास ही होते हैं । हालांकि इस बदलते समाज में हम लड़के और लड़कियों में भेदभाव नहीं करने का दावा करते हैं, लेकिन हकीकत इससे जुदा है । दरअसल हमारा भारत गांव में बसता है, और गांव में आज भी शिक्षा की भारी कमी है। हालांकि सरकार और सामाजिक संस्थाओं के द्वारा बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं । लेकिन महिलाओं को अभी भी ग्रामीण इलाकों में पुरुषों के बराबर हक नहीं मिल पा रहा । महिलाओं को भूमि अधिकार में जो चुनौतियां सामने आ रही है, उनमें धार्मिक और सामाजिक परंपराएं मुख्य हैं। परिवार का मार्गदर्शन करने वाले बड़े बुजुर्ग आज भी भूमि अधिकार के मामले में अपने परिवार के पुरुषों को ही चुनते हैं । उन्हें लगता है कि पुरुष को मिले अपने इस अधिकार से वह जमीन का संरक्षण बेहतर तरीके से कर सकते हैं । लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर महिलाओं को भूमि अधिकार मिले तो वह पुरुषों के मुकाबले और बेहतर तरीके से जमीन का संरक्षण कर सकती हैं। एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद में 70 फ़ीसदी भूमि अधिकार पुरुषों के हाथ में है, तो सिर्फ 30 फ़ीसदी भूमि अधिकार ही महिलाओं को मिले हैं । यह अनुपात कहीं से भी लैंगिक समानता के अनुरूप नहीं है। महिलाओं को भूमि अधिकार मिलना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तभी महिलाएं सशक्त बन सकती हैं, जो की महिला सशक्तिकरण के दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा ।