उत्तरप्रदेश राज्य के हरदोई ज़िला से अनुराग ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि भारतीय समाज में लैंगिक असमानता के पीछे धार्मिक व सामाजिक परम्पराएं हैं, जिनका पालन हमारा समाज सदियों से करता आ रहा है । लड़कियों की अपेक्षा लड़को की शिक्षा पर हमारे समाज द्वारा अभी तक ध्यान दिया जाता था, शिक्षा के मामले में लड़कियां पीछे रह जाती थी, या उन्हें जान बूझकर पीछे रखा जाता था । इसके पीछे भारतीय समाज की दकियानूसी सोच ही थी। अक्सर हम सुनते आए थे कि लड़की है बड़ी होकर शादी के बाद घर में चूल्हा चौका ही करना हैं। इसी सोच के चलते लड़कियां शिक्षा से वंचित रही, लिहाजा उनमें जागरूकता की कमी हो गई। हालांकि आज के बदलते समय में लड़कियों को अब शिक्षा से बड़े पैमाने पर जोड़ा जा रहा हैं। लेकिन जागरूकता की कमी के चलते महिलाएं अपने अधिकार व समानता से वंचित रह गई हैं। समाज में जो मानदंड बनाये गए उसके अनुसार महिलाओं को पुरुषों के अधीन रहना चाहिए। समाज को चाहिए कि वह दकियानूसी सोच से बाहर निकले साथ ही लड़कियों को शत प्रतिशत शिक्षा के साथ अन्य अधिकार भी मुहैया कराए। लैंगिक असमानता न केवल महिलाओं के विकास में बाधा पहुंचाती हैं, बल्कि राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक विकास को भी प्रभावित करती हैं। स्त्रियों को समाज में उचित स्थान न मिले तो देश पिछड़ेपन का शिकार हो सकता हैं। लैंगिक समानता के लिए ग्रामीण इलाकों में परम्पराओं में बदलाव की नितांत आवश्यकता है।