यह नौकरी उन लोगों के लिए है जो भारतीय डाक सर्किल द्वारा निकाली गयी ब्रांच पोस्ट मास्टर, असिस्टेंट ब्रांच पोस्ट मास्टर, एवं डाक सेवक के पद पर कार्य करने के लिए इच्छुक हैं। तीनों पदों पर कुल 44,228 रिक्तियां निकाली हैं। इन पदों के लिए मासिक वेतन 10,000 से 30,000 रूपए रखा गया है। वैसे उम्मीदवार इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिन्होंने किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से मैट्रिक पास किया हो।साथ ही आवेदन कर्ता की आयु 18 से 40 वर्ष के बीच होनी चाहिए। इन पदों के लिए आवेदन शुल्क सामान्य वर्ग के लिए 100 रूपए तथा आरक्षित वर्ग एवं महिलाओं के लिए निशुल्क रखा गया है। इच्छुक उम्मीदवार को अपना आवेदन ऑनलाइन भरना होगा। अधिक जानकारी के लिए आवेदन कर्ता इस वेबसाइट पर जाकर जानकारी ले सकते हैं, वेबसाइट है www.indiapostgdsonline.gov.in/आवेदनकर्ताओं का चयन मेरिट लिस्ट के आधार पर किया जायेगा। याद रखिये आवेदन करने की अंतिम तिथि 05/08/2024 है।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अर्जचाँदनी त्रिपाठी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की साथियों लैंगिक असमानता की बात करें तो इसका सीधा सा अर्थ है की समाज में लिंग के आधार पर किया जाने वाला भेदभाव। सजीव श्रृष्टि में मानव ही सबसे अधिक बुद्धिमान और विवेकवान जीव माना गया है। मानव का अर्थ मनुष्य जाति से है इसमें लिंग भेद का कोई अर्थ ही नहीं,अब जानते है हमारे मानव समाज के बारे में मूलतः मानव जाति में लिंग के आधार पर तीन प्रकार के मानव होते हैं, जिनमें महिला पुरुष और ट्रांसजेंडर लिंग के लोग हैं। लैंगिक भेद भाव को आधार मान कर देखा जाए तो आज समाज में सबसे अधिक भेदभाव ट्रांसजेंडरो के साथ होता है। दूसरे नंबर पर यह भेदभाव महिलाओं के साथ होता आया है। किंतु अब इसमें तेजी से कमी आ रही है। आप सभी को याद होगा की अभी कुछ वर्षो पहले हमारे पुरुष प्रधान माने जाने वाले समाज में अचानक महिलाओं की संख्या कम होने लगी थी। जिससे लैंगिक आधार पर समाज में महिला पुरुष का अनुपात बिगड़ने लगा और महिलाओं से जुड़े यौन अपराध तेजी से बढ़ने लगे थे। यहां तक कि बेटियों को बचाने के लिए सरकार को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देना पड़ा था। इस जन जागरूकता अभियान का पूरे देश में खासा असर भी हुआ और लगातार महिला पुरुष के लैंगिक असंतुलन के अनुपात में व्यापक सुधार हुआ। आज देश के कई राज्यों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से भी अधिक हो गई है। पुरुष प्रधान समाज में सदियों से महिलाओं के साथ भेदभाव होता रहा है। किंतु अब स्थितियां तेजी से बदल रही हैं आज महिलाएं पुरुषों को भी पीछे छोड़ कर आगे निकल रही हैं। समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जहां आज महिलाएं प्रतिनिधित्व नहीं कर रही हों। व्यापक बदलाव का ही असर है की आज समाज में महिलाएं अपने साथ हो रहे सामाजिक अन्याय का तीव्र प्रतिकार भी कर रही हैं। किंतु आज भी समाज में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग पुरुषों के सानिध्य में रह कर महिलाओं के बढ़ते कदमों को रोकने में लगा हुआ है। जो कि एक दुखद स्थिति है। कई बार तो लैंगिक आधार पर वरीयता पाकर कुछ महिलाएं पुरुषों पर अत्याचार करने में भी पीछे नहीं है। समय आ चुका है कि हमें यह समझना होगा की लैंगिक आधार पर कोई भी दूसरे के साथ अन्याय ना करें।समानता का अर्थ बराबरी का होता है, जहां पर कोई छोटा या बड़ा नहीं बल्कि एक समान होता है। प्रकृति ने नर मादा के रूप में महिला पुरूष का निर्माण किया है। दोनों की अपनी विशेषताएं भी हैं और क्षमताएं भी ऐसे में एक दूसरे का पूरक बन कर ही लैंगिक असमानता के भेदभाव को मिटाया जा सकता है।
हर व्यक्ति के जीवन में गुरू का महत्व शीर्ष पर रहा है। साथ ही गुरूओं का भी मूल दायित्व यही है कि अच्छी शिक्षा और संस्कारों से देश के भविष्य नौनिहालों को पोषित करें तथा समाज और राष्ट्र को एक सही सकारात्मक दिशा दें। आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, हमारे बीच ऐसे बहुत से लोग हैं जो कि अपने मोबाइल फ़ोन में भी फिंगर प्रिंट लॉक लगा कर रखते हैं। डिजिटलाइजेशन के आज के इस दौर में बड़ी औद्योगिक इकाईयों, यूनिवर्सिटियों, मेडिकल कॉलेजों, आईटी कंपनियों, पॉलीटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेजों, बैंकों, बीमा कंपनियों, शॉपिंग मॉल, अखबारों के दफ्तरों और बहुत से सरकारी संस्थानों में डिजिटल उपस्थिति अर्थात हाजिरी लगाई जा रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश के सरकारी परिषदीय स्कूलों में जैसे ही डिजिटल हाजिरी की व्यवस्था लागू करने की बात उठी उत्तर प्रदेश के सभी शिक्षक विरोध पर उतर आए। नतीजा यह हुआ कि सीएम योगी आदित्यनाथ को दो महीने तक के लिए डिजिटल हाजिरी लगाने का आदेश ठंढ़े बस्ते के हवाले करना पड़ा। आइए जानते हैं सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की समस्याओं के बारे में उत्तरप्रदेश के सरकारी स्कूलों के शिक्षक लंबे समय से पुरानी पेंशन व्यवस्था ओपीएस अर्थात ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही शिक्षकों की यह भी शिकायत है कि बच्चों को पढ़ाने के अलावां उनसे चुनाव में मतदान, मतगणना, जनगणना, मतदाता सूची, स्कूलों में विद्यार्थियों के नामांकन (संख्या) बढ़ाने, योग दिवस व अन्य राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने, आधार, टीसी, मुल्यांकन, ट्रेनिंग, सर्वे, मासिक बैठकें, टीएलएम, खेल,पौधरोपण,सांस्कृतिक कार्यक्रम, रसोइया चयन, मीना मंच, परीक्षा ड्यूटी, आॅडिट, स्वास्थ्य और शिक्षा जागरूकता रैलियां निकालने समेत दर्जनों कार्य कराए जाते हैं जिससे शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के अलावां अन्य कार्यों को पूरा कराने में उलझ कर रह जाते हैं। लेकिन वास्तविकता के धरातल पर देखा जाए तो सभी सरकारी विभागों के कामकाज की तरह ही शिक्षकों के कार्य भी दोष पूर्ण रहते हैं। बेहतरीन शिक्षा देने वाले प्राइवेट शिक्षण संस्थानों का दावा है कि हमारे संस्थानों में सरकारी ट्रेंड शिक्षकों का एक दिन भी काम कर पाना मुश्किल है। उत्तर प्रदेश में सरकारी शिक्षा और शिक्षकों का राजनीति से जुड़ाव ही इसके हासिए पर पहुंचने की मूल वजह है। प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में 3.5 वर्ष के बच्चों के एडमिशन हो रहे हैं जबकि सरकारी स्कूलों में कक्षा एक में एडमिशन के लिए 6 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित की गई है। ऐसे में सरकारी स्कूलों में नामांकन (एडमिशन) कम हो रहे हैं। दूसरी बड़ी वजह मिड-डे-मील योजना में बच्चों को परोसा जाने वाला भोजन है। मध्यवर्गीय संभ्रांत परिवारों के लोग मिड-डे-मील और सरकारी शिक्षकों की नेतागिरी के कारण ही अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में नहीं कराना चाहते हैं। समय आ गया है कि अब सरकार को रेल सेवा, स्वस्थ सेवा,तहसीलों और जिले के सरकारी प्रशासनिक अधिकारियों की सेवाएं, एंबुलेंस सेवा, आपदा प्रबंधन सेवा, पुलिस विभाग की सेवाओं की तरह ही शिक्षकों के यूनियन अर्थात संगठन पर भी रोक लगानी चाहिए। ताकि पढ़े लिखे लोगों को अपनी शिक्षा सेवा जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का बोध होता रहे। प्रति माह भारी भरकम वेतन पाने वाले शिक्षक अपने नैतिक कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों से बचते हुए दर्जनों बहाने बना कर शिक्षण कार्यों से दूर रह कर सिर्फ एक बड़ा वोट बैंक बन कर सरकारों के साथ लगातार सौदेबाजी करते रहे हैं। एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ शिक्षक ने बताया कि सरकार यदि सिर्फ कक्षा 8 तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मेडिकल इंजीनियरिंग और सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं सेवायोजन में सिर्फ 10% वरीयता देने की घोषणा कर दे तो सभी सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को बैठाने के लिए जगह कम पड़ जाएगी। देश का हर नागरिक अपने बच्चों को सिर्फ सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाना चाहेगा। इससे शिक्षक शिक्षा और पढ़ाई लिखाई में व्यापक बदलाव हो जाएगा। सरकार खुद ही प्राइवेट शिक्षण संस्थानों के हांथों की कठपुतली बन कर हुई है।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि प्रसाशन अपने नियमों का उल्लंघन करते हैं। भीड़ प्रबंधन को नजरअंदाज करते हुए वे भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। भीड़ प्रबंधन के लोग वी. आई. पी. की देखभाल करने के लिए नियमों का उल्लंघन करते हैं। समारोह के लिए कम से कम व्यवस्था की जाती है और अधिक से अधिक लोगों के इकट्ठा होने का प्रचार किया जाता है। भीड़ का प्रबंधन करने वाले लोगों को अन्य कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है जिन्हें उन्हें पूरा करना होता है। विशेष अवसरों और समारोहों के कारण जब भीड़ बढ़ती है तो सुरक्षा प्रणालियों की भी कमी होती है।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि एक महिला के शिक्षित होने का मतलब है की वह अपने लिए सही निर्णय लेने में सक्षम है।वह घर की जिम्मेदारी को बांटने करने का भी काम करती है।एक शिक्षित महिला स्वतंत्र होती है, लेकिन वह अपनी सीमाओं को भी समझती है, जैसे एक शिक्षित पुरुष को होना चाहिए और वह घर और परिवार के विकास में भी उसके साथ है और एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक परिवार का विकास करना बहुत महत्वपूर्ण है।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि एक कारण यह है कि विरासत के कानून में एकरूपता की कमी है, कई धार्मिक समुदायों के अपने कानून उन पर और कई जनजातियों पर लागू होते हैं। कई आदवासी समुदाय अपने स्वयं के प्रथागत कानूनों द्वारा शासित होते हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाओं को संपत्ति, कृषि भूमि या अन्य अचल संपत्ति देने के लिए अनिच्छुक हैं। यह भूमि के विभाजित होने या लड़की के विवाह पर भूमि पर परिवार के अधिकार के खो जाने के डर के कारण है।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अनुराधा श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि लैंगिक असमानता लिंग के आधार पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को दर्शाता है और पारंपरिक रूप से महिलाओं को घर और समाज दोनों में समाज के एक कमजोर वर्ग के रूप में देखा जाता है। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया भर में प्रचलित है। भारतीय समाज में महिलाओं को अक्सर घरेलू काम के लिए उपयुक्त माना गया है। घर में महिलाओं का मुख्य कार्य भोजन की व्यवस्था करने और बच्चों की परवरिश तक सीमित हैं। यह अक्सर देखा गया है कि घर के लिए लिए गए निर्णयों में महिलाओं की कोई भूमिका नहीं होती है
उत्तर प्रदेश राज्य के बहराइच जिला से अनुराधा श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि हमारे देश में हाल ही में एक शादी हुई थी जिसमें लगभग पांच हजार सौ करोड़ रुपये खर्च हुए हैं और हमारा दुर्भाग्य है कि जुलाई के महीने में जिओ का रिचार्ज डेटा की कीमतें बढ़ा दी गई हैं, जिससे जनता नाराज है। देश के किसान अच्छी तरह से खेती नहीं कर पा रहे हैं, अपनी बेटियों की शादी नहीं कर पा रहे हैं। वे दिन-रात मेहनत करते हैं और जब उनको मेहनत का फल नही मिल पता है तो,पैसों के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। मीडिया उद्योगपतियों की शादियों का प्रचार करने में लगी हैं।
शब्द को साक्षात परम् ब्रम्ह अर्थात ईश्वर का स्वरूप माना गया है। शब्दों को हमारे विचारों की मुद्रा भी कहा गया है। इन शब्दों में अद्भुत अतुलनीय शक्ति होती है। शब्दों से बने मंत्रों से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। शब्दों का अपना कोई आकार नहीं होता। फिर भी मनुष्य के मन पर इन शब्दों का बहुत ही व्यापक और अमिट प्रभाव पड़ता है। शब्द हमारे जीवन की दशा और दिशा बदलने में सक्षम होते हैं। इतिहास में ऐसे लाखों प्रमाण मिलते हैं जिसमें कि शब्दों के रूप में प्राप्त हुए उपदेशों, व्यंग्य और चुनौतियां बड़ी घटनाओं का कारण बनीं। शब्द हमारे मानसिक पटल का दर्पण माने गए हैं, अर्थात शब्दों के उच्चारण और उनके प्रस्तुतिकरण से ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है। जिस प्रकार एक वाद्य यंत्र की पहचान उसके स्वर से होती है, ठीक उसी तरह व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी के माध्यम से बोले गए शब्दों के द्वारा होती है। शब्दों के प्रयोग में मनुष्य के व्यवहार और उसके आचरण की सुचिता झलकती है। शब्द अदृश्य होते हुए भी बड़ी सशक्तता के साथ श्रोताओं को प्रभावित करते हैं। शब्दों में मनुष्य के पारिवारिक, सामाजिक संबंधों के निर्माण तथा विध्वंस शक्ति होती है। स्नेहिल शब्दों का प्रभाव औषधि के समान कल्याणकारी होता है। जिस प्रकार से द रोगी व्यक्ति को शांति प्रदान करती है उसी प्रकार शालीनता से प्रयोग किए गए शब्द सुनने वाले के मन में शांति और उल्लास का संचार करते हैं। क्रोधित अवस्था में बोले गए शब्द विष के समान मनुष्य के अंतःकरण को उद्विग्न बना देते हैं। वाणी द्वारा शब्दों का प्रयोग करते हुए विवेक का प्रयोग परम आवश्यक है। विवेकहीन होकर प्रयोग किए गए शब्द मधुर संबंधों को भी नष्ट कर देते हैं। मनुष्य के मन में उतरना तथा मन से उतरना शब्दों के प्रयोग पर ही निर्भर करता है। कड़वे, क्रोध एवं असभ्य शब्दों का प्रयोग शस्त्रों के घाव से भी घातक और भयंकर होता है। शस्त्र का घाव तो कुछ समय के बाद भर जाता है, लेकिन शब्दों द्वारा घायल हुआ मनुष्य का मानस पटल जीवन भर नहीं भर पाता है। शब्दों का प्रभाव बड़ा तीव्र त्वरित और प्रबल होता है। शब्द विष भी हैं और अमृत भी। शब्दों के सांचे में ही मानवीय संबंधों का ताना- बाना निर्मित होता है। माधुर्य एवं सौम्यता से परिपूर्ण शब्दावली में शत्रु को भी मित्र बनाने की क्षमता होती है। शब्द वरदान भी बन जाते हैं और अभिशाप भी। शब्दों से ही मनुष्य का व्यक्तित्व और उसके गुण दोष परिलक्षित होते हैं।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत में असमानता एक गहरी समस्या है जो भारत के लिए भी चिंता का विषय है। यह शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और घरेलू निर्णय लेने जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों सहित विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इस अभियान में समाज के हर वर्ग को लैंगिक असमानता के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए शामिल किया जाएगा और लोगों को यह समझाने की कोशिश की जाएगी कि लैंगिक समानता केवल महिलाओं के लिए है। अभियान के तहत विभिन्न माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है