मोबाइल वाणी और माय कहानी का एक ख़ास पेशकस आपके लिए कार्यक्रम भावनाओं का भवर जहाँ हम सुनेंगे मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने से जुड़ी कुछ जानकारियां , तो आइये, आज की कड़ी में सुनेंगे बुलिंग यानि कि ताकत दिखाके बदमाशी करना क्या होता है और इसका पहचान कैसे किया जाये साथ ही इस समस्या से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है इस बारे में । हां तो साथियों, बुलिंग का सामना करना कोई आसान काम नहीं होता है। हमारे समाज में कई ऐसे लोग हैं जो इसका शिकार है. क्या आपने या आपके किसी जानने वाले ने कभी अपने जीवन में बुलिंग का सामना किया है ? आखिर क्या वजह है कि समाज में बुलिंग जैसी समस्या उत्पन्न होती है और क्यों लोग इस समस्या से जूझने के लिए मजबूर होते हैं ? बुलिंग से जूझने में माता पिता की क्या भूमिका हो सकती है ? साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी सुनने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। https://www.youtube.com/@mykahaani

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

दोस्तों, मोबाइलवाणी के अभियान क्योंकि जिंदगी जरूरी है में इस बार हम इसी मसले पर बात कर रहे हैं, जहां आपका अनुभव और राय दोनों बहुत जरूरी हैं. इसलिए हमें बताएं कि आपके क्षेत्र में बच्चों को साफ पानी किस तरह से उपलब्ध हो रहा है? क्या इसमें पंचायत, आंगनबाडी केन्द्र आदि मदद कर रहे हैं?आप अपने परिवार में बच्चों को साफ पानी कैसे उपलब्ध करवाते हैं? अगर गर्मियों में बच्चों को दूषित पानी के कारण पेचिस, दस्त, उल्टी और पेट संबंधी बीमारियां होती हैं, तो ऐसे में आप क्या करते हैं? क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों से बच्चों का इलाज संभव है या फिर इलाज के लिए दूसरे शहर जाना पड रहा है? जो बच्चे स्कूल जा रहे हैं, क्या उन्हें वहां पीने का साफ पानी मिल रहा है? अगर नहीं तो वे कैसे पानी का इंतजाम करते हैं?

बनो नई सोच ,बुनो हिंसा मुक्त रिश्ते की आज की कड़ी में हम सुनेंगे महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और हिंसा के बारे में।

छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति जल्द मिल सकती है। अधिक जानकारी के लिए ऑडियो को पूरा सुने धन्यवाद।

मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय अभ्युदय 24 का हुआ समापन। अधिक जानकारी के लिए ऑडियो को पूरा सुने धन्यवाद।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि बच्चे स्कूल में पाँच से छह घंटे बिताते हैं , यह एक लंबा समय है , इसलिए बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों में शौचालय का उपयोग करना स्वाभाविक है । उपलब्धता के साथ - साथ यह भी देखने की जरूरत है कि शौचालय साफ है या नहीं , इन पांच - छह घंटों में शौचालय कितनी बार साफ किया जाता है , पर्याप्त पानी है या नहीं । लड़कियों के शौचालय में सैनिटरी पैड फेंकने की व्यवस्था हो या न हो , साबुन की व्यवस्था हो या न हो , स्कूल के शौचालय में ये सुविधाएं न हों या उनकी कमी हो , तो लड़कियों की तुलना में लड़कियों की संख्या अधिक होगी । लेकिन यह लड़कों की तुलना में लड़कियों को अधिक प्रभावित करेगा क्योंकि जब लड़कियां मासिक धर्म शुरू करती हैं , तो शौचालय की आवश्यकता अधिक हो जाती है । कुछ स्कूलों में केवल एक शौचालय है , जो साफ भी नहीं है । शिशु लड़कियों , विशेष रूप से किशोर लड़कियों के पास पीरियड्स के दौरान पर्याप्त शौचालय की सुविधा नहीं होती है ।

सरकारी स्कूल और लिंग के साथ - साथ लड़कियों की शिक्षा और लैंगिक असमानता , शौचालय कर्मचारी कम प्रासंगिक हैं । यहाँ बताया गया है कि उपस्थिति और अनुपस्थिति कैसे प्रभावित कर रही है कि स्कूल पहुँचने वाले एक किशोर छात्र को स्कूल में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है । प्रारंभिक शिक्षा के बाद लड़कियों की पढ़ाई छोड़ने की दर अधिक पाई गई है । पढ़ाई के लिए आने वाले अधिकांश बच्चे गरीब और उत्पीड़ित परिवारों से हैं और उनके परिवार की आय बहुत कम है , इसलिए यह परिवार महंगी निजी स्कूली शिक्षा का खर्च उठाने में असमर्थ है । निजी विद्यालय की फीस बहुत महंगी होती है । सरकारी स्कूलों की तुलना में किताबें और वर्दी भी बहुत महंगी हैं । अवसर मिलने पर गरीब परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेज सकते हैं ।

गोरखपुर के चार केन्द्रो पर होगा यूपी बोर्ड की कॉपियों का मूल्यांकन। अधिक जानकारी के लिए ऑडियो को पूरा सुने धन्यवाद।

गोरखपुर के 141 माध्यमिक विद्यालयों में होगी हाईटेक तरीके से पढ़ाई, सीएम योगी देंगे ये उपहार