मोबाइल वाणी और माय कहानी की खास पेशकश कार्यक्रम भावनाओं का भवर में। साथियों, आज के समय में सभी के लिए पैसों का होना बहुत ही आवश्यक है। बहुत से लोगों की सोच होती है कि पैसे के बिना कुछ नहीं हो सकता है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि अगर कोई चाहे तो कम पैसों में भी अपना गुजारा कर सकता है और अपने जीवन में खुश रह सकता है। पर यह कैसे संभव है ? तो चलिए आज की कड़ी में इसी विषय पर बात करते हैं और जानते हैं कि आखिर कम पैसों में भी खुश कैसे रहा जा सकता है। क्यूंकि मानसिक विकार किसी की गलती नहीं इसलिए इससे जूझने से बेहतर है इससे जुड़ी पहलुओं को समझना और समाधान ढूंढना. तो आइये सुनते हैं कम पैसों में खुश और स्वस्थ्य रहने के राज और इसके फायदों के बारे में।....... साथियों अभी हमने सुना की हमारे लिए अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना क्यों महत्वपूर्ण है ? अभी हमने सुना कि अगर कोई इंसान चाहे तो कम पैसों में भी जीवन में खुश रह सकता है। अब अगली कड़ी में जानेंगे कि दूसरों से अलग होते हुए भी एक व्यक्ति खुद को अपने वास्तविक रूप को स्वीकार करके और हंसी - ख़ुशी से कैसे अपना जीवन बिता सकता है ? लेकिन उससे पहले आप हमें बताएं कि आज के इस दिखावे और चकाचौंध से भरी दुनिया में एक इंसान कम पैसों में खुद को कैसे खुश और स्वस्थ रख सकता है ? क्या आपने ऐसा अनुभव कभी अपने जीवन में किया है कि आपके पास इतने पैसे नहीं हो जितनी की आपको जरूरत हो और फिर भी आपने चीजों को अच्छे से मैनेज किया हो अगर हाँ तो कैसे? अपना अनुभव हमारे साथ साझा करें।साथियों अकसर हमें यह सुनने को मिल जाता है कि जितना है उतना में खुश रहना सिखो लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होता है यार फिर यह सिर्फ एक कहावत ही बनकर रह जाता है ? आपके अनुसार किसी व्यक्ति के जीवन में पैसा होना या न होना उसके मन मस्तिष्क को किस हद तक प्रभावित कर सकता है ? दोस्तों, अगर आज के विषय से जुड़े आपके मन में कोई सवाल है तो हमें जरूर बताएं अपने फ़ोन में नंबर 3 दबाकर। हम कोशिश करेंगे उनका जवाब ढूंढ के लाने की। साथ ही इसी तरह की और भी जानकारी सुनने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://www.youtube.com/@mykahaani
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि महिलाओं का संरक्षण महिलाओं की गरीबी सीधे तौर पर आर्थिक अवसरों और स्वायत्तता के अभाव, ऋण, भूमि स्वामित्व और विरासत सहित आर्थिक संसाधनों तक पहुंच की कमी, और शिक्षा और सहायता सेवाओं तक पहुंच के कारण है। निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की कमी और न्यूनतम भागीदारी से संबंधित, गरीबी उन स्थितियों में भी महिलाओं के लचीलेपन को मजबूत कर सकती है जहां वे शोषण की चपेट में हैं। कई देशों में, समाज कल्याण प्रणालियाँ गरीबी में रहने वाली महिलाओं की विशिष्ट स्थितियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं देती हैं और ऐसी प्रणालियों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को कम करती हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में गरीबी में गिरने का खतरा अधिक होता है, विशेष रूप से वृद्धावस्था में जहां सामाजिक सुरक्षा प्रणालियां निरंतर पारिश्रमिक रोजगार के सिद्धांत पर आधारित होती हैं।कई मामलों में, पारिश्रमिक और अवैतनिक काम के असंतुलित विवरण के कारण महिलाएं अपने काम में बाधाओं के कारण इस आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं।
महिलाओं को अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी जैसे क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोकता है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या और बाल विवाह जैसी हिंसा लैंगिक असमानता का एक भयानक रूप है। यह हिंसा महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाती है और उन्हें डर और असुरक्षा में जीने के लिए मजबूर करती है। लैंगिक असमानता गरीबी और असमानता को बढ़ावा देती है, क्योंकि महिलाएं अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों में काम करती हैं और उन्हें भूमि और संपत्ति जैसे संसाधनों तक कम पहुंच होती है। दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----लैंगिक असमानता के मुख्य कारण क्या हैं? *-----आपके अनुसार से लैंगिक समानता को मिटाने के लिए भविष्य में क्या-क्या तरीके अपनाएँ जा सकते हैं? *-----साथ ही, लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से क्या प्रयास कर सकते हैं?
2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से ताराकेश्वरी श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि मनरेगा से वंचित 61 महिलाओं के पक्ष और विपक्ष में बोलते हुए, भारत में ग्रामीण आदिवासियों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा का लाभ मिलता है। यह योजना गरीब और वंचित वर्गों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य के साथ गरीबी, अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ाई में एक प्रमुख उपकरण है। मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयास भी किए जाते हैं। मनरेगा के तहत वंचित महिलाओं को विशेष रूप से लाभ होता है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को रोजगार प्रदान करती है। वे ऐसे अवसर प्रदान करते हैं जो उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करते हैं, उनके परिवार के सदस्यों का समर्थन करते हैं, और समाज में उनकी मानवीय और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद करते हैं। महिलाओं को उचित मजदूरी और काम के लिए उचित पारिश्रमिक प्रदान किया जाता है, यह उनकी स्वतंत्रता और स्थिति की समानता को बढ़ावा देने के अलावा उनकी अपनी आर्थिक स्थिति को स्वतंत्रता के साथ जोड़ता है।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अनुराधा मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि जो अमीर हैं वे पैसे के बल पर सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन जो हमारे गरीब परिवारों से हैं, वे हमारे अधिकारों का लाभ उठाते हैं। सभी लोग बैठे हैं, पैसे मांगते हैं और पैसे नहीं दे पाते हैं, इसलिए उन्हें उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस लाभ की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन वह अपने धन के बल पर सभी योजनाओं का लाभ उठाता है। इन योजनाओं का लाभ हमारे गरीब परिवारों, हमारे गरीब समाज तक पहुंचना चाहिए, अगर आप देखें तो गरीबी की कोई सीमा नहीं है। हमारी सरकार आवास योजना चला रही है और हमारे गरीब लोगों को उस आवास योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, तो इसे चलाने का क्या फायदा? चूंकि उनके बच्चों को समय पर एक बार का भोजन नहीं मिल पाता है, इसलिए उन्हें इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, तब से वे कहीं जा सकते हैं और एक बार की रोटी की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन हमारी सरकार वही है जो वह है।
भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर से अदिति श्रीवास्तव ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत गंभीर भुखमरी और कुपोषण से जूझ रहा है। कई अलग-अलग रिपोर्टों के माध्यम से यह बात सामने आई है। भारत की यह स्थिति तब है जब देश में सरकार द्वारा मुफ्त या कम कीमत पर राशन दिया जाता है। फिर भी भारत गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है। ऐसे में सरकारी नीतियों को बदलने की सख्त आवश्यकता है ताकि कोई भी बच्चा भूखा न सो सके । विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर से तारकेश्वरी श्रीवास्तव ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बताया कि भूख से तड़पते नवजात बच्चों के बीच शाही तमशा एक दुःखद और सोचने पर मजबूर करने वाला मुद्दा है।यह दृश्य हमें असहाय जीवन की कठिन पीड़ा के प्रति संवेदनशील बनाता है जिसे सीमित साधनों के साथ जीना पड़ता है । इस समस्या का सामना कर रहे बच्चों के भोजन , स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी को समझ सकते हैं । इस समस्या को हल करने के लिए समाज में जागरूकता फैलाना और जन समर्थन में बदलाव लाना महत्वपूर्ण है । सरकारी और सामाजिक संगठनों और सामाजिक समूहों को मिलकर इन बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली आहार ,स्वास्थ्य सुरक्षा और शिक्षा प्रदान करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए । विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
भारत गंभीर भुखमरी और कुपोषण के से जूझ रहा है इस संबंध में पिछले सालों में अलग-अलग कई रिपोर्टें आई हैं जो भारत की गंभीर स्थिति को बताती है। भारत का यह हाल तब है जब कि देश में सरकार की तरफ से ही राशन मुफ्त या फिर कम दाम पर राशन दिया जाता है। उसके बाद भी भारत गरीबी और भुखमरी के मामले में पिछड़ता ही जा रहा है। ऐसे में सरकारी नीतियों में बदलाव की सख्त जरूरत है ताकि कोई भी बच्चा भूखा न सोए। आखिर बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं।स्तों क्या आपको भी लगता है कि सरकार की नीतियों से देश के चुनिंदा लोग ही फाएदा उठा रहे हैं, क्या आपको भी लगता है कि इन नीतियों में बदलाव की जरूरत है जिससे देश के किसी भी बच्चे को भूखा न सोना पड़े। किसी के व्यक्तिगत लालच पर कहीं तो रोक लगाई जानी चाहिए जिससे किसी की भी मानवीय गरिमा का शोषण न किया जा सके।