महिलाओं को अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी जैसे क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोकता है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या और बाल विवाह जैसी हिंसा लैंगिक असमानता का एक भयानक रूप है। यह हिंसा महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाती है और उन्हें डर और असुरक्षा में जीने के लिए मजबूर करती है। लैंगिक असमानता गरीबी और असमानता को बढ़ावा देती है, क्योंकि महिलाएं अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों में काम करती हैं और उन्हें भूमि और संपत्ति जैसे संसाधनों तक कम पहुंच होती है। दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----लैंगिक असमानता के मुख्य कारण क्या हैं? *-----आपके अनुसार से लैंगिक समानता को मिटाने के लिए भविष्य में क्या-क्या तरीके अपनाएँ जा सकते हैं? *-----साथ ही, लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से क्या प्रयास कर सकते हैं?

हिंसा महिलाओं के लिए एक बड़ी समस्या है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्रभाव व्यापक और व्यापक है। यह गंभीर है और पीड़ितों के शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है जिसमें मामूली यौन संचारित रोग और गर्भावस्था से संबंधित जटिलताएं शामिल हो सकती हैं।महिलाओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है, जैसे कि अवसाद, चिंता और आत्महत्या के विचार, और इसके प्रभाव सामाजिक और आर्थिक स्तरों पर भी स्पष्ट हैं क्योंकि यह महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी को सीमित करता है। इस समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कानूनी सुधार जागरूकता अभियान और सरकार, गैर सरकारी संगठनों और समाज के सभी वर्गों द्वारा सहायता सेवाएं शामिल हैं।

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

बेटों की चाह में बार-बार अबॉर्शन कराने से महिलाओं की सेक्शुअल और रिप्रोडक्टिव लाइफ पर भी बुरा असर पड़ता है। उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ भी खराब होने लगती है। कई मनोवैज्ञानिको के अनुसार ऐसी महिलाएं लंबे समय के लिए डिप्रेशन, एंजायटी का शिकार हो जाती हैं। खुद को दोषी मानने लगती हैं। कुछ भी गलत होने पर गर्भपात से उसे जोड़कर देखने लगती हैं, जिससे अंधविश्वास को भी बढ़ावा मिलता है। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि * -------आखिर हमारा समाज महिला के जन्म को क्यों नहीं स्वीकार पाता है ? * -------भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा के आपको क्या सम्बन्ध नज़र आता है ?

बनो नई सोच ,बुनो हिंसा मुक्त रिश्ते की आज की कड़ी में हम सुनेंगे महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और हिंसा के बारे में।

दहेज में परिवार की बचत और आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है. वर्ष 2007 में ग्रामीण भारत में कुल दहेज वार्षिक घरेलू आय का 14 फीसदी था। दहेज की समस्या को प्रथा न समझकर, समस्या के रूप में देखा जाना जरूरी है ताकि इसे खत्म किया जा सके। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आपके क्या विचार है ? *----- आने वाली लोकसभा चुनाव में दहेज प्रथा क्या आपके लिए मुद्दा बन सकता है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

बनो नई सोच ,बुनो हिंसा मुक्त रिश्ते की आज की कड़ी में हम सुनेंगे यौन हिंसा के बारे में।

भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

Transcript Unavailable.

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाएं लोक विकास की कुंजी हैं । आधार यह है कि बापू का मानना था कि एक पुरुष और एक महिला के बीच कोई अंतर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे केवल एक दूसरे से शारीरिक रूप से अलग हैं । न ही हम , विशेष रूप से अगर हमें एक अहिंसक समाज का निर्माण करना है , तो महिलाओं की क्षमता पर भरोसा कर सकते हैं , जो किसी भी मजबूत राष्ट्र के लिए सच है । आधी आबादी की यह सफलता देश और समाज को एक पहचान देती है , हालांकि यह दुखद है कि हम आज भी महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक समाज नहीं बना पाए हैं । संविधान ने पुरुषों और महिलाओं को समान नागरिक अधिकार दिए हैं , लेकिन इन अधिकारों को जीने और अपने स्वतंत्र अस्तित्व को बढ़ाने के लिए आधी आबादी को कई अन्य मोर्चों पर भी संघर्ष करना पड़ा है । महिलाएं अपने उचित अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं । समाज में महिलाओं को कई प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है । उनके खिलाफ अपराध के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं । वे बड़ी संख्या में यौन शोषण से पीड़ित हैं ।