सिविल लाइंस, जो बनाया तो अंग्रेजों के लिए गया था लेकिन वह तो रहे नहीं सो अब हमारे काम आ रहा है। बेहद खूबसूरत, जगमगाती इमारतें, चौड़ी सड़कें, फर्राटा भरती गांडियां और सबकुछ इतना करीने से की घूमने के लिए अद्भुत जगह, मेरा खुद से देखा हुआ अब तक का सबसे शानदार दिलकश, बगल में कॉफी की महक उड़ाता इंडियन कॉफी हाउस। और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

किसी भी शहर की वैसे तो कई पहचानें हो सकती हैं, आप की पहचान क्या है यह आपको खुद ढूंढना पड़ेगा, हां यह शहर आपकी मदद कर देगा बिना यह जाने के आप कौन है, कहां से आए हैं, और किसलिए आए हैं। यह इलाहाबाद में ही संभव है कि यह राजनीति की पाठशाला भी बनता है, तो धर्म का संगम भी इसी के हिस्से है, धर्म और अधर्म के बीच झूलती राजनीति को सहारा और रास्ता दिखाने वाली तालीम और साहित्य भी इसी शहर की पहचान हैं। इस सब के बावजूद कोई अगर प्रेम न कर पाए तो फिर उसके मानव होने पर भी संदेह होने लगता है।

इंदौर मप्र के मालवा में बसा हुआ है और मालवा माटी को लेकर कहावत है कि मालव माटी गहन गंभीर, पग पग रोटी डग डग नीर... सैकड़ों बरस पहले कही गई यह बात आज भी उतनी ही सच्ची लगती है। इंदौर की सूरत और सीरत आज भी इस कहावत पर कायम है। आप पूछेंगे कैसे तो वो ऐसे कि यहां आने वाला कोई आदमी शायद ही कभी भूखे लौटता होगा।

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नर्मदा के किनारों पर अलग-अलग राजवंशों की न जाने कितनी कहानियां लिखी हुई हैं। हालांकि राजवंशों से ज्यादा सभ्यता की कहानियां ज्यादा मुक्कमल दिखाई देती हैं। नर्मदा और उसकी महत्ता को बेहतर समझना हो तो हर साल होने वाली नर्मदा परिक्रमा को देख आना चाहिए। कहने को तो यह परिक्रमा धार्मिक है लेकिन उससे ज्यादा यह सामाजिक है, और प्रकृति के साथ मानव के सहअस्तिव का ज्ञान कराती है।

संचालित चलो चले कार्यक्रम में आप सभी श्रोताओं को बताना चाहता हूं । यह राज्य द्वारा उठाया गया एक बहुत ही सराहनीय और अच्छा कदम है ताकि हम लोगों को बहुत सारी नई जानकारी मिले और इस जानकारी से लाभ हो । ऐसा होता है कि यहां आए बिना हम इसके इतिहास को मन की नजर से देखते हैं और वहां पहुंचने पर इसका आनंद लेते हैं । हमें यह कार्यक्रम बहुत पसंद है कि हम चतरा जिले में पहुँचते हैं , वहाँ का तफोरी मंदिर देखते हैं , वहाँ का बौद्ध स्थल देखते हैं , वहाँ का जैन धर्म और भद्रकाली देखते हैं । अगर आप मंदिर देखते हैं तो आप इन सभी चीजों का वर्णन इस तरह से करते हैं कि सर एक रेखाचित्र इस तरह से बनाते हैं कि यह लोगों के दिमाग और दिमाग को प्रभावित करता है और मैं कहता हूं कि ऐसे कार्यक्रम हमारे लिए हमेशा उपलब्ध रहने चाहिए ।

चलो चले कार्यक्रम मैं चतरा द्वारा संचालित शरनाथ माओ मोबरबारी चतरा जी दे के सभी श्रोताओं को बताना चाहता हूं । जिले का वर्णन बहुत ही सुंदर तरीके से किया गया है , जिससे हमें बहुत सारी जानकारी मिलती है जो किताबों में कभी नहीं मिलती है । हम नहीं जानते और इसे देखकर और सुनकर हम सीधे चतरा तक पहुँचते हैं और मन की आँखों से मन की उस गति के साथ वहाँ पहुँचते हैं । हम सब चीजों को बहुत व्यवस्थित तरीके से देख पाते हैं और अगर हम सोचते हैं कि हमने पूरा दौरा कर लिया है तो अगर इस तरह का कार्यक्रम चलता रहा तो हम बहुत सारे लोगों को देखेंगे । जानकारी हमेशा मौजूद रहती है , इसलिए मेरा सुझाव है कि कार्यक्रम इस तरह की भटकने की इच्छा और जिज्ञासा के साथ जारी रहे ताकि विभिन्न स्थानों का पता लगाया जा सके । जो विवरण किताबों में नहीं है , जिसे हम अखबारों में कभी नहीं पढ़ सकते हैं , उसे पढ़ा और सुना जा सकता है , देखा और जानकारी दी जा सकती है , इसलिए मेरी बात सुनें ।

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अगर कोई चतरा आये और झारखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल इटखोरी के बारे में बात न करें , ऐसा तो हो ही नहीं सकता। तो हम भी यहाँ के दर्शन और इतिहास को खँगालने यहाँ आ पहुँचे। गौरवपूर्ण अतीत को संभाल कर रखने वाले इटखोरी के भद्रकाली में तीन धर्मों का समागम है। हिंदू, बौद्ध एवं जैन धर्म के लिए यह पावन भूमि है। ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को सुने ...