जन्म से आठ साल की उम्र तक का समय बच्चों के विकास के लिए बहुत खास है। माता-पिता के रूप में जहाँ हम परवरिश की खूबियाँ सीखते हैं, वहीँ इन खूबियों का इस्तेमाल करके हम अपने बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा दे सकते है। आप अपने बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ाने और उन्हें सीखाने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाते है? इस बारे में बचपन मनाओ सुन रहे दूसरे साथियों को भी जानकारी दें।
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री जीवदास साहू मटर की खेती के बारे में जानकारी दे रहे है । मटर की खेती के लिए अच्छे बीज,खाद सहित अन्य जानकारियों के लिए ऑडियो पर क्लिक करें...
कड़ी संख्या-18;अपनी जमीन, अपनी आवाज - सुरक्षित भूमि अधिकार: महिला सशक्तिकरण और खाद्य सुरक्षा की कुंजी
बिहार के नवादा जिले के एक गांव में रहने वाली फगुनिया या फिर उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के किसी गांव में रहने वाली रूपवती के बारे में अंदाजा लगाइये, जिसके पास खुद के बारे में कोई निर्णय लेने की खास वज़ह नहीं देखती हैं। घर से बाहर से आने-जाने, काम काज, संपत्ति निर्माण करने या फिर राजनीतिक फैसले जैसे कि वोट डालने जैसे छोटे बड़े निर्णय भी वह अक्सर पति या पिता से पूछकर लेती हो? फगुनिया और रूपवती के लिए जरूरी क्या है? क्या कोई समाज महज दो-ढाई महिलाओं के उदाहरण देकर उनको कब तक बहलाता रहेगा? क्या यही दो-ढ़ाई महिलाएं फगुनिया और रूपवती जैसी दूसरी करोड़ों महिलाओं के बारे में भी कुछ सोचती हैं? जवाब इनके गुण और दोष के आधार पर तय किये जाते हैं।दोस्तों इस मसले पर आफ क्या सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें .
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...
नमस्कार आदाब साथियों ,मोबाइल वाणी ले कर आया है रोजगार समाचार। आईटीबीपी द्वारा कांस्टेबल ड्राइवर के पद पर कुल 545 रिक्तियाँ निकाली गई है। न्यूनतम 21 वर्ष से अधिकतम 27 वर्ष वाले वैसे पुरुष जिन्होंने किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण किया हो ,वो इस पद के लिए आवेदन कर सकते है। आवेदनकर्ता के पास हैवी व्हीकल ड्राइविंग लाइसेंस होना अनिवार्य है। एससी ,एसटी ,ओबीसी क्रीमी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आयुसीमा में छूट निर्धारित की गई है । आवेदनकर्ताओं का चयन लिखित परीक्षा ,डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन ,मेडिकल टेस्ट और शारीरिक दक्षता परीक्षा के आधार पर किया जाएगा। इस पद के लिए वेतनमान 21 ,700 रूपए से 69,100 रूपए निर्धारित है। इच्छुक उम्मीदवार आईटीबीपी के आधिकारिक वेबसाइट में जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते है साथ ही आप इस वेबसाइट के माध्यम से आधिकारिक अधिसूचना भी प्राप्त कर सकते है। आधिकारिक वेबसाइट है recruitment.itbpolice.nic.in . सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए 100 रूपए आवेदन शुल्क निर्धारित किया गया है और अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति ,ओबीसी ,ईडब्लूएस उम्मीदवारों के लिए आवेदन निशुल्क है। याद रखिये आवेदन करने की अंतिम तिथि 06 नवंबर 2024 है। तो साथियों,अगर आपको यह जानकारी लाभदायक लगी, तो मोबाइल वाणी एप्प पर लाइक का बटन दबाये साथ ही फ़ोन पर सुनने वाले श्रोता 5 दबाकर इसे पसंद कर सकते है। नंबर 5 दबाकर यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ भी बाँट सकते हैं .
साथियों, मनुष्य एवं समस्त प्राणी जगत को जीवित रहने के लिए भोजन एक प्रमुख संघटक होता है। और भोजन पाना हर व्यक्ति का अधिकार होता है लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया में हर किसी के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है कई लोग ऐसे हैं, जो हर दिन भूखे पेट सोने को बेबस हैं । लेकिन दूसरी ओर यह भी देखने को मिलता है की लोग भोजन की बर्बादी भी करते हैं। लोगों में भोजन के महत्व को समझाने और जरूरतमंद लोगों को दो वक्त के भोजन मिल पाए इस उद्देश्य से हर वर्ष 16 अक्टूबर को विश्व खाद दिवस मनाया जाता है।
सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...
ग्रामीण महिला सशक्तिकरण का अर्थ है ग्रामीण महिलाओं को उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने में सक्षम बनाना। यह उन्हें निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है। सशक्तिकरण का मतलब सिर्फ महिलाओं को शिक्षित करना या उन्हें रोजगार देना नहीं है, बल्कि उन्हें समाज में समानता का दर्जा देना भी है। महिलाओं का सशक्तिकरण समाज के समग्र विकास के लिए आवश्यक है। जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो वे अपने परिवार और समुदाय के लिए बेहतर निर्णय ले सकती हैं। तब तक दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- आधी आबादी या महिलाओं को उनका पूरा हक दिया जाने से उनके जीवन सहित समाज में किस तरह के बदलाव आएगा जो एक बेहतर और बराबरी वाले समाज के निर्माण में सहायक हो सकता है? *----- साथ ही आप इस मुद्दे पर क्या सोचते है ? और आप किस तरह अपने परिवार में इसे लागू करने के बारे में सोच रहे है ?