Bina kisi purv suchna ke sarve karne pahunche Anjan logon ko dekh ekjut hue gramin

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जाति भारतीय समाज की कड़वी सच्चाई है लेकिन इसे खुले तौर पर कभी स्वीकार नहीं किया जाता। जब राजनीतिक फायदा उठाने की बात होती है तो जाति का सवाल खड़ा कर दिया जाता है लेकिन जब आदर्श की बात होती है तो जाति रहित समाज की ओर कदम बढ़ाने की चर्चा होने लगती है। ये दोनों ही बातें विरोधाभासी हैं।

भारत में पहली बार अग्रेजों की सरकार ने 1931 में में भी जातिगत जनगणना कराई थी और उसी के आधार पर आजतक जाती गत आरक्षण दिया जाता रहा है। आधुनिक आजाद भारत में समाजिक आर्थिक और जनसंख्या का पता लगाने के लिए अनेकों बार जनगणना तो होती रही है लेकिन जाति के आधार पर नागरिकों की गिनती आज तक नहीं हुई है।

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