चुनाव का माहौल देखरकर जनता भी उत्साहित है कि वह एक बार फिर उसके अपने हितों के लिए काम करने वाली सरकार का चुनाव करेगी। जनता उत्साहित भले ही हो कि उसके लिए काम करने वाली सरकार का चुनाव हो रहा है, लेकिन इसमें उसकी भागीदारी नहीं के बराबर है। अगर भागीदारी होती तो राजनीतिक दल उनकी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारते, लेकिन यहां तो हालात ऐसे हैं कि जो भी चुनाव जिता सके उसे उम्मीदवार बना दिया जा रहा है।
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री जीवदास साहू ,टमाटर की खेती के सम्बन्ध में जानकारी दे रहे है । टमाटर के उन्नत किस्म और इसके उपचार की अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हम जानेंगे - बकरी के घर को साफ़ रखना क्यों जरूरी है ? अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.
'जैक औफ ऑल मास्टर ऑफ नन 'हर नए बनने वाले पत्रकार को सबसे पहले यह एक वाक्य सिखाया जाता है पत्रकार को आम मसले का जानकार होना चाहिए विदवान नहीं। तब जाकर ही वो आम नागरिक से जुड़े समस्याओं को पहचान पायेगा और उनके लिए काम कर पाएगा। सिद्धांतों में ये बात अच्छी है लेकिन वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। इतनी की भारत की पत्रकारिता जगत के बड़े पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान जो जन्मग के बड़े हिस्से को प्रभावित करते हैं या कर सकते हैं वे भी इस लाइन को भूल गए हैं या जान बूझकर इसे याद नहीं रखा।
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिलदेव शर्मा पशुपालन के बारे में बता रहे हैं की बकरी का कैसा हो अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.
क्रिकेट के चाहने वालों के अलावा इस मैच की तैयारी करने वालों में वे लोग भी थे जो भारत और पाकिस्तान के नाम पर नफरत फैलाने का कारोबार करने से नहीं चूकते। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने यही किया, लेकिन पहले की तुलना में इस बार उनकी नफरत एक स्तर ऊपर थी। इस बार एक और नई चीज यह थी कि उन्होंने पाकिस्तान को नीचे दिखाने की हर संभव कोशिश जिसके लिए उन्होंने इसराइल फलिस्तीन के बीच पिछले हफ्ते शुरु हुए युद्ध को भी आधार बनाया
"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ श्री संदीप कुमार ,धान की बाली में लगने वाले कीड़े से बचाव सम्बन्धी जानकारी दे रहे है । अधिक जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें.
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दोस्तों, सरकारी स्कूलों की बदहाली किससे छुपी है? इसी कारण देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक, पूरी तरह से बाजारवाद में जकड़ गई है। उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा संपन्न प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई करते हैं भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी? देश के छोटे से छोटे विकास खंड में सरकारी स्कूलों में करोड़ों खर्चे जाते हैं फिर भी उनका स्तर नहीं सुधरता। -------------तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? -------------वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? -------------और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ? दोस्तों इस मुद्दे पर अपनी बात को जरूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर या मोबाइल वाणी एप्प में ऐड का बटन दबाकर।