सोनपुर प्रखंड क्षेत्र के सबलपुर में चल रहे श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन सप्तम दिवस शुक्रवार को कथा व्यास बहन सुश्री देवीप्रिया ने भगवान श्रीकृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह के बारे में विस्तार पूर्वक बताई। उन्होंने कहा कि नरकासुर नामक एक दैत्य ने अपनी मायाशक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर रखा था। उसने कई राज्यों की राजकुमारियों और संतों की स्त्रियों को अपने पास बंदी बना लिया था और सबकी बलि देना चाहता था। जब नरकासुर का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया, तो देवता व ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास मदद मांगने गये। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसान दिया लेकिन एक श्राप के अनुसार नरकासुर की मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही संभव थी। इसीलिए श्रीकृष्ण उसका संहार करने के लिए अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाकर ले गए। उन्होंने उसका वध किया और सभी कैद कन्याओं को मुक्त कराया। दैत्य के कारावास से मुक्त होने के बाद जब ये कन्याएं अपने घर पहुंची, तो समाज और परिवार ने उन्हें चरित्रहीन कहकर अपनाने से मना कर दिया।तब उन्होंने भगवान कृष्ण से मदद मांगी और श्रीकृष्ण ने 16100 प्रतिरूप धरे और उन्होंने एक साथ सबके साथ 16100 रूपों में प्रकट होकर विवाह किया। शास्त्रों में भगवान कृष्ण की इन पत्नियों को पटरानियां कहा गया है। श्रीकृष्ण अपने प्रतिरूप बनाकर अपनी सभी पत्नियों के साथ रहते थे और उन्होंने कभी किसी के साथ न तो अन्याय किया और न कभी किसी को उसके अधिकार से वंचित किया। उन्होंने सबको पति का प्रेम दिया। श्रीकृष्ण के 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र भी थे। उनकी सभी पत्नियों के 10-10 पुत्र थे और एक-एक पुत्री भी उत्पन्न हुई थी। इसी गणना के अनुसार कृष्ण के 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र और 16 हजार 108 पुत्रियां थीं।भगवान कृष्ण की आठ प्रमुख पटरानियां रुक्मणी, जामवंती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रवृदां, नग्नजिति, रोहिणी और लक्ष्मणा थीं। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कथा व्यास सुश्री देवीप्रिया ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी से समझ सकते हैं । उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र से सखा सुदामा मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। उन्होंने कहा कि सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं।इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु श्री कृष्ण से कहा कि हे प्रभु आपसे कोई मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है ।जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा- सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया। दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया और उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। जब जब भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं।इस प्रकार कथा के अंत में व्यास पीठ से सुश्री देवीप्रिया बहन ने बताया कि अगले प्रसंग में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है। इसी के साथ कथा का विराम हो गया। वही संध्याकालीन सबलपुर पश्चिमी पंचायत के कुमरघट पर गंगा आरती का आयोजन किया गया। जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु गण उपस्थित रहे। इस गंगा आरती में महाकाल बाबा के नेतृत्व में आधे दर्जन से ऊपर पंडितो ने वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ शंख ध्वनि, घंटी एवं गंगा आरती कर यजमान उत्तरी पंचायत के पूर्व पैक्स अध्यक्ष संगीता देवी पति जयराम राय एवं समाजसेवी लाल बाबू पटेल ने सात दिवसीय यज्ञ व गंगा आरती में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। मौके पर संगीता देवी ने कहा कि सनातन धर्म में माँ गंगा क़े स्वच्छ रखना और पुजा अर्चना करना हमारी संस्कृति की रक्षा मातृशक्ति व माँ क़े आरती से ही संभव है। वही लालबाबू पटेल ने कहा कि गंगा का पानी निर्मल और स्वच्छ व सुंदर कल कल छल छल धराए है। सभी लोग गंगा व नरायणी सहित अन्य नदीयों को स्वच्छ रखें। गंगा आरती करने या उसमे शामिल होने से धन,सुख,वैभव की प्राप्ति होती है। गंगा आरती के दौरान अर्पित किए गए दीप हमारी प्रार्थना को देवताओं तक पहुंचाने का सरल मार्ग है।