बिहार राज्य के किशनगंज जिले के जदयू के वरिष्ठ नेता एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आरक्षण मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हाजी मोहम्मद परवेज सिद्दीकी के नेतृत्व में अकलियती बेदारी कारवां किशनगंज पहुंचा , इस मौके पर परवेज सिद्दीकी कहा कि अल्पसंख्यकों के बीच जागरुकता लाने और मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में हुए विकास कार्यों, खासकर अल्पसंख्यक कल्याण के क्षेत्र में हुए कार्यों को उन तक पहुँचाने के उद्देश्य से यह यात्रा निकाली जा रही है। उन्होंने कहा कि श्री नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के सर्वांगीण उत्थान के लिए बिहार में जो किया वह पूरे देश के लिए नजीर है। अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग का गठन हो, अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं के लिए राज्य स्तर पर स्वतंत्र निदेशालय की स्थापना हो, बिहार राज्य अल्पसंख्यक वित्त निगम द्वारा अल्पसंख्यकों के स्वरोजगार हेतु ऋण की व्यवस्था हो – ये तमाम कार्य श्री नीतीश कुमार ने ही किए। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का जो बजट 2004-05 में मात्र 3.45 करोड़ रु. था, वो 2022-23 में 200 गुणा से भी अधिक बढ़कर 700 करोड़ रु. हो गया। हाजी मोहम्मद परवेज सिद्दीकी ने आगे कहा कि श्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में तालीमी मरकज द्वारा अल्पसंख्यक बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था, मदरसों का आधुनिकीकरण, अल्पसंख्यक समाज की बेटियों के व्यावसायिक कौशल के लिए ‘हुनर’ एवं ‘औजार’ कार्यक्रम, सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना के तहत यूपीएससी एवं बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास करने पर क्रमश: 1 लाख एवं 50 हजार की प्रोत्साहन राशि, उद्यमी योजना के तहत 10 लाख रुपये तक का ब्याजमुक्त ऋण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों की लम्बी फेहरिस्त है। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में बिहार में साम्प्रदायिक दंगे की एक भी घटना नहीं हुई और कब्रिस्तानों की घेराबंदी जैसे कार्य मील के पत्थर साबित हुए। हाजी मो. परवेज सिद्दीकी ने कहा कि अकलियतों का मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार से बड़ा हिमायती कोई नहीं। “अकलियती बेदारी कारवां” के तहत अकलियतों के जीवन-स्तर को सुधारने और उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाने वाली तमाम योजनाओं की जानकारी जन-जन तक तक पहुँचाई जाएंगी और उन्हें जागरुक किया जाएगा। पहले चरण में यह यात्रा सीमांचल के चार जिलों - पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज - से होकर गुजरेगी।

बीते दिनों महिला आरक्षण का बहुत शोर था, इस शोर के बीच यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए की अपने को देश की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाले दल के आधे से ज्यादा भू-भाग पर शासन होने के बाद भी एक महिला मुख्यमंत्री नहीं है। इन सभी नामों के बीच ममता बनर्जी इकलौती महिला हैं जो अभी तक राजनीति में जुटी हुई हैं। वसुंधरा के अवसान के साथ ही महिला नेताओं की उस पीढ़ी का भी अवसान हो गया जिसने पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय तक महिलाओं के हक हुकूक की बात को आगे बढ़ाया। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जबकि देश में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की बात की जा रही है। एक तरफ महिला नेताओं को ठिकाने लगाया जा रहा है, दूसरी तरफ नया नेतृत्व भी पैदा नहीं किया जा रहा है।

किशनगंज जिले में अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने प्रधानमंत्री के नाम डीएम को एक आवेदन सौंपा है।जिसमें महिला आरक्षण बिल को सार्वजनिक करने, 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल में ओबीसी, मुस्लिम, एससीएसटी महिलाओं को विशेष रूप से जोड़ने सहित विभिन्न मांगों को लेकर आवेदन सौंपा गया।

सवाल है कि जिस कानून को इतने जल्दबाजी में लाया जा रहा हैं उसके लागू करने के लिए पहले से कोई तैयारी क्यों नहीं की गई, या फिर यह केवल आगामी चुनाव में राजनीतिक लाभ पाने के दृष्टिकोण से किया जा रहा है।