कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान और फिर हुए अनलॉक के बाद भी विभिन्न फैक्ट्रियों, कम्पनियों, कार्यालयों में कार्यरत कामगारों के बिना सूचना के निकाले जाने का शुरू हुआ सिलसिला अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा। इन खबरों के माध्यम से हम आपको बस इतना बताना चाहते हैं कि कामगारों को सिर्फ़ अभी ही नहीं निकाला जा रहा, बल्कि इनको बिना सूचना दिए काम से निकालने का क्रम तो बहुत पहले से चला आ रहा है। हाँ, उसके पीछे के बहाने जरूर बदल जाते हैं, जैसे अभी कोरोना-संक्रमण के कारण छायी वैश्विक मंदी और माँग कम होने के कारण हो रहे घाटे का है। इसलिए इन बीत चुकी खबरों के माध्यम से हमें इतिहास में झांकते हुए उससे सबक़ सीखने और खुद को विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार रहने की सीख मिलती है।केंद्र सरकार द्वारा मीडिया के लिए बनाए गए बोर्ड ने जब 2008 में सभी अख़बार कम्पनियों को अपने कर्मचारियों के लिए नया ग्रेड लागू करने का आदेश दिया, तब उसके ख़िलाफ़ सारी अख़बार कम्पनियाँ उच्चतम न्यायालय तक जाने के बाद भी मुक़दमा हार गयीं, लेकिन अपने कर्मचारियों के लिए नया ग्रेड लागू नहीं किया। तब उच्चतम न्यायालय ने उन्हें नया ग्रेड लागू करने और एरियर का भुगतान चार किश्तों में करने का आदेश दिया, जिसे पूरा करने का भरोसा सभी अख़बार कम्पनियों ने दिया। उस समय एक-एक कामगार को ये चौदह-पंद्रह हज़ार वेतन दे रहे थे, जबकि बोर्ड के अनुसार यह वेतन बावन से पचपन हज़ार होना चाहिए था।

प्लॉट- 6, सेक्टर- 3, आईएमटी, मानेसर स्थित ओमैक्स ऑटो फ़ैक्ट्री के श्रमिक जब 28 मई, 2018 को सुबह ड्यूटी के लिए पहुँचे, तो उन्हें गेट पर नोटिस के साथ पुलिस तैनात मिली और 190 स्थायी श्रमिकों की नौकरी समाप्त कर दी गयी। 1983 में स्थापित ओमैक्स ऑटो कम्पनी की सम्पूर्ण भारत में 9 फैक्ट्रियाँ हैं। कम्पनी की बिनौला फ़ैक्ट्री से 300 स्थायी श्रमिकों की नौकरी 11 महीने पहले समाप्त कर उत्पादन बन्द कर दिया गया था , जबकि रेलवे डिविज़न में काम जारी था। कम्पनी की धारूहेड़ा फ़ैक्ट्री में भी 7 महीने पहले नए यूनियन लीडर और 300 स्थायी श्रमिकों की नौकरी समाप्त कर दी गयी और पुराने यूनियन लीडर निलम्बित कर दिए गए थे, लेकिन 30-40 स्थायी श्रमिक फ़ैक्ट्री में आते-जाते रहे थे और उन्हें एक महीने बाद हिसाब दे दिया गया। धारूहेड़ा फ़ैक्ट्री में ठेकेदार कम्पनियों के ज़रिए रखे श्रमिकों और छः महीने वाले अस्थायी श्रमिकों द्वारा उत्पादन जारी रखा गया। इधर तेइस मार्च, 2018 को कम्पनी ने आईएमटी, मानेसर में फ़ैक्ट्री बन्द करने और श्रमिकों की की नौकरी समाप्त करने का आवेदन श्रम विभाग में दिया था, जिसका यूनियन ने विरोध किया था। इसके बाद गुड़गाँव से मामला चंडीगढ़ भेज दिया गया, तब श्रमायुक्त ने श्रमिकों को कम्पनी की अन्य फैक्ट्रियों में भेजने की बात की। इसके बाद शनिवार, छब्बीस मई को राज्यपाल का पत्र यूनियन को मिला, जिसमें फ़ैक्ट्री चलाने तथा छः महीने में श्रम विभाग, गुड़गाँव में समझौता करने को कहा था। 2016 में ओमैक्स ऑटो की मानेसर स्थित फ़ैक्ट्री में हीरो बाइक के बॉडी फ़्रेम बनाने वाले श्रमिकों में से 900 को ठेकेदार कम्पनियों के ज़रिए रखा गया था। इन 900श्रमिकों ने फ़रवरी, 2016 में मिलकर कदम उठाए थे। वर्षों से काम कर रहे जिन 175 श्रमिकों को कम्पनी अस्थायी कहती थी, उनके क़ानूनन स्थायी श्रमिक होने के बाद भी यूनियन ने उन्हें सदस्य नहीं बनाया। जबकि कम्पनी प्रबंधन से समझौता करने का दबाव डालने के लिए इन 900 तथा 175 श्रमिकों का इस्तेमाल यूनियन ज़रूर करती रही। नवम्बर, 2016 में 12-12 घंटे की जगह फ़ैक्ट्री में 8-8 घंटे की दो शिफ़्ट कर दी गयीं और वेल्ड शॉप से 50 अस्थायी श्रमिक निकाल दिए गए और फ़रवरी, 2017 से कम्पनी प्रबंधन घाटे की बात करने लगा। इधर अस्थायी श्रमिकों के पीएफ़ खाते में भी गड़बड़ी थी। दीपावली, 2017 से स्टाफ़ वाले 175 श्रमिकों को निकालने की बात करने लगे थे और 1 मार्च, 2018 को नोटिस देकर जब उन 175 श्रमिकों को निकाल दिया गया, तब यूनियन चुप रही और फिर 28 मई को यूनियन सदस्यों की भी नौकरी समाप्त कर दी गयी।तो श्रोताओं! कैसी लगी आज की जानकारी? हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से अगर आपके दैनिक कामकाजी जीवन में कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा हो, आपको कुछ करने की प्रेरणा मिलती हो और आप अपने कार्यस्थल पर हो रहे श्रमिक-विरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ संगठित होकर आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित होते हैं, तो आप अपना अनुभव हमारे साथ ज़रूर साझा करें अपने मोबाइल में नम्बर तीन दबाकर, धन्यवाद।

मानेसर स्थित होंडा की फ़ैक्ट्री में ठेकेदारों के द्वारा रखे गए लगभग ढाई हज़ार श्रमिकों की छँटनी शुरू होने पर उनके सामूहिक विरोध के परिणामस्वरूप श्रम विभाग में तीन मार्च, 2020 को समझौते के बाद उनकी छँटनी क्षतिपूर्ति प्रतिवर्ष पंद्रह हज़ार से बढ़ाकर तेइस हज़ार करने के बाद यह प्रसंग समाप्त हुआ। अब हम बात करेंगे 2017-18 में प्रकाशित भारत सरकार नेशनल सैम्पल सर्वे कार्यालय द्वारा भारत सरकार के 1948 के फ़ैक्ट्रिज एक्ट के तहत पंजीकृत कारख़ानों के बारे में- इस समय तक एक लाख, पिचानवे हज़ार, पाँच सौ चौरासी फैक्ट्रियाँ सम्पूर्ण भारत में चालू अवस्था में थीं, जिनमें एक करोड़, छप्पन हज़ार लोग कार्यरत थे और इन फैक्ट्रियों में वर्ष भर में अस्सी करोड़ बहत्तर लाख रुपए का उत्पादन हुआ था। इसके अतिरिक्त सरकारी तथा ग़ैर-सरकारी कारपोरेट क्षेत्र की फैक्ट्रियों में एक करोड़ बारह लाख से अधिक लोग कार्यरत थे, जिनमें उनहत्तर करोड़, इकतालीस लाख करोड़ रुपए से अधिक का उत्पादन हुआ था। अगर सम्पूर्ण भारत में हम उत्पादन की राज्यवार स्थिति देखें तो इसमें गुजरात का हिस्सा 16.84%, महाराष्ट्र का 14.86%, तमिलनाडु का 10.70%, कर्नाटक का 6.55%, उत्तर प्रदेश का 6.37%, हरियाणा का 6.23%,पश्चिम बंगाल का 3.95%, आंध्र प्रदेश का 3.85%, राजस्थान का 3.68%, मध्य प्रदेश का 3.18%, उत्तराखंड का 2.92%, उड़ीसा का 2.84%, तेलंगाना का 2.75%, पंजाब का 2.62%, केरल का 2.02%, झारखंड का 1.75%, छत्तीसगढ़ का 1.55%, हिमाचल प्रदेश का 1.39%, आसाम का 0.83% और बिहार का हिस्सा 0.74% था।

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आज हम बात करेंगे आपसे जुलाई, 2009 में बी 134, ओखला, फ़ेज़ 1, दिल्ली स्थित वीयरवेल कम्पनी में हो रहे श्रमिकविरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ श्रमिकों के संगठित विरोध और काम बन्द करने की धमकी के बाद घुटनों पर आए कम्पनी-प्रबंधन के द्वारा सुलहनामे पर तैयार होने की..ऑडियो पर क्लिक कर सुनें पूरी खबर..

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फ़रीदाबाद मज़दूर समाचार की इस कड़ी में जानेंगे कि फैक्टरियों में पीएफ़ को लेकर किस तरह की समस्या झेल रहे हैं मज़दूर...सुनने के लिए क्लिक करें ऑडियो पर...

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