कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान और फिर हुए अनलॉक के बाद भी विभिन्न फैक्ट्रियों, कम्पनियों, कार्यालयों में कार्यरत कामगारों के बिना सूचना के निकाले जाने का शुरू हुआ सिलसिला अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा। इन खबरों के माध्यम से हम आपको बस इतना बताना चाहते हैं कि कामगारों को सिर्फ़ अभी ही नहीं निकाला जा रहा, बल्कि इनको बिना सूचना दिए काम से निकालने का क्रम तो बहुत पहले से चला आ रहा है। हाँ, उसके पीछे के बहाने जरूर बदल जाते हैं, जैसे अभी कोरोना-संक्रमण के कारण छायी वैश्विक मंदी और माँग कम होने के कारण हो रहे घाटे का है। इसलिए इन बीत चुकी खबरों के माध्यम से हमें इतिहास में झांकते हुए उससे सबक़ सीखने और खुद को विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार रहने की सीख मिलती है।केंद्र सरकार द्वारा मीडिया के लिए बनाए गए बोर्ड ने जब 2008 में सभी अख़बार कम्पनियों को अपने कर्मचारियों के लिए नया ग्रेड लागू करने का आदेश दिया, तब उसके ख़िलाफ़ सारी अख़बार कम्पनियाँ उच्चतम न्यायालय तक जाने के बाद भी मुक़दमा हार गयीं, लेकिन अपने कर्मचारियों के लिए नया ग्रेड लागू नहीं किया। तब उच्चतम न्यायालय ने उन्हें नया ग्रेड लागू करने और एरियर का भुगतान चार किश्तों में करने का आदेश दिया, जिसे पूरा करने का भरोसा सभी अख़बार कम्पनियों ने दिया। उस समय एक-एक कामगार को ये चौदह-पंद्रह हज़ार वेतन दे रहे थे, जबकि बोर्ड के अनुसार यह वेतन बावन से पचपन हज़ार होना चाहिए था।

मानेसर स्थित होंडा की फ़ैक्ट्री में ठेकेदारों के द्वारा रखे गए लगभग ढाई हज़ार श्रमिकों की छँटनी शुरू होने पर उनके सामूहिक विरोध के परिणामस्वरूप श्रम विभाग में तीन मार्च, 2020 को समझौते के बाद उनकी छँटनी क्षतिपूर्ति प्रतिवर्ष पंद्रह हज़ार से बढ़ाकर तेइस हज़ार करने के बाद यह प्रसंग समाप्त हुआ। अब हम बात करेंगे 2017-18 में प्रकाशित भारत सरकार नेशनल सैम्पल सर्वे कार्यालय द्वारा भारत सरकार के 1948 के फ़ैक्ट्रिज एक्ट के तहत पंजीकृत कारख़ानों के बारे में- इस समय तक एक लाख, पिचानवे हज़ार, पाँच सौ चौरासी फैक्ट्रियाँ सम्पूर्ण भारत में चालू अवस्था में थीं, जिनमें एक करोड़, छप्पन हज़ार लोग कार्यरत थे और इन फैक्ट्रियों में वर्ष भर में अस्सी करोड़ बहत्तर लाख रुपए का उत्पादन हुआ था। इसके अतिरिक्त सरकारी तथा ग़ैर-सरकारी कारपोरेट क्षेत्र की फैक्ट्रियों में एक करोड़ बारह लाख से अधिक लोग कार्यरत थे, जिनमें उनहत्तर करोड़, इकतालीस लाख करोड़ रुपए से अधिक का उत्पादन हुआ था। अगर सम्पूर्ण भारत में हम उत्पादन की राज्यवार स्थिति देखें तो इसमें गुजरात का हिस्सा 16.84%, महाराष्ट्र का 14.86%, तमिलनाडु का 10.70%, कर्नाटक का 6.55%, उत्तर प्रदेश का 6.37%, हरियाणा का 6.23%,पश्चिम बंगाल का 3.95%, आंध्र प्रदेश का 3.85%, राजस्थान का 3.68%, मध्य प्रदेश का 3.18%, उत्तराखंड का 2.92%, उड़ीसा का 2.84%, तेलंगाना का 2.75%, पंजाब का 2.62%, केरल का 2.02%, झारखंड का 1.75%, छत्तीसगढ़ का 1.55%, हिमाचल प्रदेश का 1.39%, आसाम का 0.83% और बिहार का हिस्सा 0.74% था।