नमस्कार श्रोताओं! मैं श्वेता आपके लिए लेकर आयी हूँ फरीदाबाद मज़दूर समाचार की एक और कड़ी ।आज की कड़ी में भी हम बात करेंगे 2007 की फरीदाबाद के कुछ फैक्ट्रियों की रिपोर्ट के बारे में ।साथियों बात 2007 की है , फरीदाबाद स्थित एक ग्लोबल कैपेसिटर फैक्ट्री में 12-12 घण्टे की दो शिफ्टे चलती थी पर कम्पनी 2-2 घण्टे ओवर टाइम बता कर उसका भुगतान सिंगल रेट से करती थी ,यह स्थिति अभी भी है।उस फैक्ट्री में करीब 80 कैजुअल वरकर थे और जिन्हे 10 घण्टे काम के बदले 60 रुपये दिए जाते थे। तीस दिन के महीने में 4 या 5 रविवार होने पर तनखा 1248 या 1200 रुपये होते थे .... जाँच के लिये आये सरकारी अधिकारी को एक कैजुअल ने तनखा 1200 रुपये बताई थी तो बाद में ग्लोब कैपेसिटर के चेयरमैन.मैनेजिंग डायरेक्टर ने दुख जताते हुये कहा था कि जो देते हैं वह तो बताओ! बड़े साहब के हिसाब से महीने का 60 गुना 30 तो 1800 हुआ - और उसमे भी आठ घण्टे और साप्ताहिक छुट्टी नहीं हैं। वैसे कैजुअल वरकरों की ई.एस. आई. व पी.एफ. नहीं हैं, यानी, यह मजदूर कम्पनी तथा सरकार के दस्तावेजों के अनुसार फैक्ट्री में हैं ही नहीं लेकिन वे रोज अपना 12-12 घंटा उस फैक्ट्री में काम में बिता देते थे। फैक्ट्री में जिस दिन साढ़े आठ घण्टे बाद छुट्टी होती थी ठीक उसी दिन जाँच होती थी... जाँच भी पूर्व सुचना के आधार पर की जाती थी। फरीदाबाद की एक और फैक्ट्री जहाँ सुबह 8 बजे एक शिफ्ट आरम्भ होती थी और रोज रात साढ़े आठ बजे तक शिफ्ट चलती थी। तो वही दूसरी शिफ्ट शाम साढ़े चार बजे शुरू होती थी और यह अगले रोज सुबह पांच बजे तक शिफ्ट चलती थी । रविवार को भी एक शिफ्ट में काम रहता ही था । स्थाई मजदूरों को न्यूनतम वेतन के डबल के हिसाब से ओवर टाइम का भुगतान करते थे । ठेकेदारों के जरिये रखे गए वरकरों को ओवर टाइम 10 रुपये प्रतिघण्टा की दर से देते थे । कई ठेकेदार हैं, एक 12 घण्टे पर महीने के 2000 रुपये और दूसरा 2485 रुपये देता था । इन दो ठेकेदारों के लिये ओवर टाइम 12 घण्टे बाद शुरू होता था । एक ठेकेदार ने करीब 150 वरकरों की भविष्य निधि राशि जमा करवाई ही नहीं । कम्पनी ने साल.भर पहले ठेका खत्म कर दिया पर उन मजदूरों को पी.एफ. के पैसे नहीं मिले। इस तरह आज भी ठेकेदार और नियोक्ता हम श्रमिकों के साथ शोषण करते आ रहें हैं। साथियों,तो हमे ज़रूरी है कि यूनियन के साथ मिलकर इसके खिलाफ आवाज़ उठाने की। तो साथियों आज के लिए बस इतना ही , मिलते है अगली कड़ी में तब तक आप हमें बताइये कि कैसी लगी आज की जानकारी? हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से अगर आपके दैनिक कामकाजी जीवन में कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा हो, आपको कुछ करने की प्रेरणा मिलती हो और आप अपने कार्यस्थल पर हो रहे श्रमिक-विरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ संगठित होकर आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित होते हैं, तो आप अपना अनुभव हमारे साथ ज़रूर साझा करें अपने मोबाइल में नम्बर तीन दबाकर, धन्यवाद।

प्लॉट- 6, सेक्टर- 3, आईएमटी, मानेसर स्थित ओमैक्स ऑटो फ़ैक्ट्री के श्रमिक जब 28 मई, 2018 को सुबह ड्यूटी के लिए पहुँचे, तो उन्हें गेट पर नोटिस के साथ पुलिस तैनात मिली और 190 स्थायी श्रमिकों की नौकरी समाप्त कर दी गयी। 1983 में स्थापित ओमैक्स ऑटो कम्पनी की सम्पूर्ण भारत में 9 फैक्ट्रियाँ हैं। कम्पनी की बिनौला फ़ैक्ट्री से 300 स्थायी श्रमिकों की नौकरी 11 महीने पहले समाप्त कर उत्पादन बन्द कर दिया गया था , जबकि रेलवे डिविज़न में काम जारी था। कम्पनी की धारूहेड़ा फ़ैक्ट्री में भी 7 महीने पहले नए यूनियन लीडर और 300 स्थायी श्रमिकों की नौकरी समाप्त कर दी गयी और पुराने यूनियन लीडर निलम्बित कर दिए गए थे, लेकिन 30-40 स्थायी श्रमिक फ़ैक्ट्री में आते-जाते रहे थे और उन्हें एक महीने बाद हिसाब दे दिया गया। धारूहेड़ा फ़ैक्ट्री में ठेकेदार कम्पनियों के ज़रिए रखे श्रमिकों और छः महीने वाले अस्थायी श्रमिकों द्वारा उत्पादन जारी रखा गया। इधर तेइस मार्च, 2018 को कम्पनी ने आईएमटी, मानेसर में फ़ैक्ट्री बन्द करने और श्रमिकों की की नौकरी समाप्त करने का आवेदन श्रम विभाग में दिया था, जिसका यूनियन ने विरोध किया था। इसके बाद गुड़गाँव से मामला चंडीगढ़ भेज दिया गया, तब श्रमायुक्त ने श्रमिकों को कम्पनी की अन्य फैक्ट्रियों में भेजने की बात की। इसके बाद शनिवार, छब्बीस मई को राज्यपाल का पत्र यूनियन को मिला, जिसमें फ़ैक्ट्री चलाने तथा छः महीने में श्रम विभाग, गुड़गाँव में समझौता करने को कहा था। 2016 में ओमैक्स ऑटो की मानेसर स्थित फ़ैक्ट्री में हीरो बाइक के बॉडी फ़्रेम बनाने वाले श्रमिकों में से 900 को ठेकेदार कम्पनियों के ज़रिए रखा गया था। इन 900श्रमिकों ने फ़रवरी, 2016 में मिलकर कदम उठाए थे। वर्षों से काम कर रहे जिन 175 श्रमिकों को कम्पनी अस्थायी कहती थी, उनके क़ानूनन स्थायी श्रमिक होने के बाद भी यूनियन ने उन्हें सदस्य नहीं बनाया। जबकि कम्पनी प्रबंधन से समझौता करने का दबाव डालने के लिए इन 900 तथा 175 श्रमिकों का इस्तेमाल यूनियन ज़रूर करती रही। नवम्बर, 2016 में 12-12 घंटे की जगह फ़ैक्ट्री में 8-8 घंटे की दो शिफ़्ट कर दी गयीं और वेल्ड शॉप से 50 अस्थायी श्रमिक निकाल दिए गए और फ़रवरी, 2017 से कम्पनी प्रबंधन घाटे की बात करने लगा। इधर अस्थायी श्रमिकों के पीएफ़ खाते में भी गड़बड़ी थी। दीपावली, 2017 से स्टाफ़ वाले 175 श्रमिकों को निकालने की बात करने लगे थे और 1 मार्च, 2018 को नोटिस देकर जब उन 175 श्रमिकों को निकाल दिया गया, तब यूनियन चुप रही और फिर 28 मई को यूनियन सदस्यों की भी नौकरी समाप्त कर दी गयी।तो श्रोताओं! कैसी लगी आज की जानकारी? हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से अगर आपके दैनिक कामकाजी जीवन में कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा हो, आपको कुछ करने की प्रेरणा मिलती हो और आप अपने कार्यस्थल पर हो रहे श्रमिक-विरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ संगठित होकर आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित होते हैं, तो आप अपना अनुभव हमारे साथ ज़रूर साझा करें अपने मोबाइल में नम्बर तीन दबाकर, धन्यवाद।

फ़रीदाबाद मज़दूर समाचार की इस कड़ी में जानेंगे कि फैक्टरियों में पीएफ़ को लेकर किस तरह की समस्या झेल रहे हैं मज़दूर...सुनने के लिए क्लिक करें ऑडियो पर...

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