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आज हम बात करेंगे आपसे फ़रीदाबाद स्थित बोनी पोलिमर्स में हो रहे श्रमिकविरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ अकेले आवाज़ बुलंद कर कम्पनी-प्रबंधन को झुकने पर मजबूर कर देने वाली एक महिला श्रमिक की संघर्षपूर्ण जीत की.. सुनने के लिए क्लिक करें ऑडियो पर..
आज हम बात करेंगे आपसे मानेसर के मारूति सुज़ुकी अलाइड निप्पोन में जनवरी 2012 में आग लगने से जले श्रमिक की मज़दूरी और इलाज सहित अन्य सुविधाओं के भुगतान हेतु साथी श्रमिकों के सफल एकजुट प्रयास की। अलाइड निप्पोन में ठेकेदार के द्वारा नियुक्त एक श्रमिक के आग लगने के कारण जल जाने पर कम्पनी ने उसे अलियर के सपना नर्सिंग होम में इलाज हेतु भर्ती कराकर डॉक्टर से शाम को डिस्चार्ज करने के लिए कह दिया। इसपर जले श्रमिक ने अलाइड निप्पोन के अपने साथी श्रमिक से उसे इसी नर्सिंग होम में रखने को कहा। अगले दिन मारूति सुज़ुकी प्लांट में ठेकेदार के द्वारा नियुक्त दस-पंद्रह श्रमिक उसे देखने गए और डॉक्टर से कहा कि इलाज करो, अगर कम्पनी पैसे नहीं देगी तो हम देंगे। काम के दौरान जले श्रमिक को देखने अगले दो दिनों तक कम्पनी का कोई अधिकारी नहीं आया, बस साथी श्रमिक आते रहे। अलाइड निप्पोन के प्रोडक्शन मैनेजर को कॉल करने पर उसने झूठ बोल दिया की किसी श्रमिक के जलने की उसे कोई जानकारी नहीं है। अगले दिन डॉक्टर ने पैसे नहीं देने पर ईएसआई भेजने की बात कही। इतना सुनते ही श्रमिक साथियों के द्वारा किए गए फ़ोन काल्स के परिणामस्वरूप आधे घंटे के भीतर ही मारूति सुज़ुकी के प्रेस शॉप, असेम्बली, पेंट शाप, वेल्ड शाप आदि विभागों तथा सुज़ुकी पावर ट्रेन के अलियर व ढाणा में रह रहे दकेदारों के द्वारा नियुक्त सत्तर-अस्सी श्रमिक नर्सिंग होम पर एकत्र हो कर वहाँ से अलाइड निप्पोन फ़ैक्ट्री पहुँचे, लेकिन कम्पनी प्रबंधक ने श्रमिकों से बात करने से भी मना कर दिया। लगभग आधे घंटे बाद जले श्रमिक की नियुक्ति करने वाली ठेकेदार कम्पनी का सुपरवाइज़र आया और उससे बातचीत में तय हुआ कि नर्सिंग होम के खर्च और उपचार के दौरान बैठे दिनों के पैसे उस घायल श्रमिक को दिए जाएँगे तथा उसके घरवालों को कॉल कर बुलाया जाएगा। अगले दिन जले श्रमिक को सेक्टर तीन स्थित ईएसआई अस्पताल ले जाकर भर्ती किया गया। वहाँ ईएसआई कार्ड माँगने पर सुपरवाइज़र ने दो घंटे का समय माँगा और 12/12/2010 से काम कर रहे उस श्रमिक ईएसआई कार्ड 16/01/2012 को बनवाया और उसकी दुर्घटना रिपोर्ट भी भरी। इसके तुरंत बाद ही घायल श्रमिक के पिता भी गाँव से आ गए। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अलाइड निप्पोन फ़ैक्ट्री में जला श्रमिक दुर्गेश बांसगांव में किराए पर रहता था तथा मारूति सुज़ुकी और सुज़ुकी पावरट्रेन के इस संदर्भ में कदम उठाने वाले श्रमिक अलियर तथा ढाणा में किराए पर रहते थे और उनमें से किसी का भी दुर्गेश से कोई परिचय नहीं था। लेकिन पिछले छः महीनों के दौरान कम्पनी-प्रबंधन के द्वारा श्रमिक-हितों को नुक़सान पहुँचाने वाले लिए गए कई निर्णयों ने श्रमिकों की भावनाओं को उभारा और उनमें संगठन की प्रवृत्ति को प्रेरित किया, जिसका सुखद परिणाम हमें दुर्गेश के साथ काम के दौरान हुई दुर्घटना के सम्बंध में देखने को मिला और इससे ये साबित हो गया कि श्रमिक अगर संगठित हो जाएँ तो कोई भी ताक़त उनकी संगठन शक्ति के आगे कमजोर साबित होती है और वे अपना हक़ प्राप्त कर सकते हैं। श्रोताओं! कैसी लगी आज की जानकारी? आप अपना अनुभव हमारे साथ ज़रूर साझा करें, अपने मोबाइल में नम्बर तीन दबाकर, धन्यवाद।
आज हम बात करेंगे सरकार द्वारा समय-समय पर लागू किए गए भू-अधिग्रहण क़ानूनों के प्रभावों की। चाहे नगर-महानगर की स्थापना की बात हो, चाहे सड़क-रेल-बंदरगाह या हवाई अड्डों का निर्माण, चाहे नदियों पर बांध बनें या फिर उनसे नहरें निकलें, चाहे कारख़ाने बनें या खदानें या फिर तेल और गैस के कुएँ, चाहे चाय-काफ़ी-रबर के बाग़ान या फिर खेती, फलों के बाग, भेड़-गाय-सूअर-मुर्गी पालन के लिए हज़ारों एकड़ में फैले फ़ॉर्म या फिर सेना की छावनियों और प्रशिक्षण तथा युद्धाभ्यास के लिए स्थान हों! इन सबमें एक बात समान है और वो है भूस्वामियों को उनकी ज़मीनों से वंचित कर देना, तरीक़ा चाहे जो भी हो! ये सारी कोशिशें एक तरह से अर्थव्यवस्था के विस्तार और उसकी मज़बूती की अनिवार्य आवश्यकताओं की आधारभूत अंग हैं।कोई भी अर्थव्यवस्था क़ानून के संरक्षण में ही अपना विकास कर पाती है। बीते वर्षों में अपनी ज़मीन से वंचित हो रहे ग्रामीणों ने कई विरोध-प्रदर्शन किए और इसे दबाने के लिए सत्ता पुलिस और सेना का प्रयोग करती रही। ये भू-अधिग्रहण क़ानून किसानों-दस्तकारों को बेहाल कर चुके हैं। यह समय गरीब मज़दूरों से अपने सम्बन्धों की डोर को और मज़बूत करने का और विभिन्न क़ानूनों की आड़ में इनका शोषण करनेवाली सत्ता के ख़िलाफ़ खड़े होने का है। तो आइए इस भौतिकतावादी अर्थव्यवस्था में निहित शोषण के कारक तत्त्वों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ और सत्ता को इसमें बदलाव के लिए जगाएँ।
फ़रीदाबाद मज़दूर समाचार में बात हो रही है लॉक डाउन के बीच शुरू हुई कंपनियों की परिस्थितियों से श्रमिकों को होने वाली विभिन्न परेशानियों के बारें में। सुनने के लिए क्लिक करें ऑडियो पर
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