कोरोना से बचाव के लिए मास्क (Mask) बेहद जरूरी है, मास्क नहीं पहनने पर जुर्माने का भी प्रावधान है, ताकि लोग सतर्क रहें और मास्क पहनकर ही घर से बाहर निकलें. लेकिन इस बीच डिस्पोजेबल मास्क को लेकर तरह-तरह की बातें की जा रही हैं. एक वीडियो में फर्जी दावा किया जा रहा है कि डिस्पोजेबल सर्जिकल मास्क में कीड़े होते हैं। विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।
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भारत में केवल 1 फ़ीसदी आबादी की महीने की कमाई 50 हजार रुपये से अधिक की है. ऐसे में भारत में स्वयं का उद्योग शुरू कर पाना काफी मुश्किल है. युवाओं के सामने सरकारी नौकरी एक अच्छा विकल्प हो सकती है लेकिन खाली पदों पर भर्ती ना होना या फिर नियुक्ति के पत्र योग्य युवाओं तक ना पहुंचना इस बात का प्रमाण है कि सरकार सरकारी नौकरियां देने के संबंध में गंभीर नहीं है। इस खबर को सुनने के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।
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बिहार राज्य के जमुई जिला के बांमदा पंचायत से उमा अंजलि ने मोबाइल वाणी को बताया कि उनके पंचायत में जो जन वितरण प्रणाली का दुकान है वहां से राशन कार्डधारियों को लगातार कई महीनों से सिर्फ अरवा चावल ही मिल रहा है। साथ ही उन्होंने बताया कि गेहूं भी ख़राब गुणवत्ता का दिया जाता है जिससे वहां के लाभुकों को काफी परेशानी होती हैं। साथ ही इसका असर उनका स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कोविड-19 से मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिजनों को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का वादा किया था. राठौड़ इस मुआवजे की पात्र हो सकती थीं. इसके पात्र लोगों में वे सब शामिल थे, जिनकी मृत्यु टेस्ट में कोविड पॉजिटिव आने या क्लीनिकल तौर पर नोवेल कोरोना वायरस की पुष्टि होने के 30 दिनों के भीतर हो गई थी. हालांकि, राज्य सरकार ने प्रमाण-पत्र दिलाने के लिए हर जिले में शिकायत निपटारा समितियों का गठन किया है, लेकिन सिंह के परिवार को इसकी प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं है.विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
आर्थिक उदारीकरण के बाद पहली बार ऐसा देखने को मिला है कि देश के सबसे गरीब 20 फीसदी भारतीय परिवारों की वार्षिक आय में बीते पांच सालों में 53 फीसदी की गिरावट आई है. र्ष 2020-2021 में गरीब लोगों की आय 2015- 2016 की तुलना में 53 फीसदी कम हो गई है. यह आय 1995 के बाद से लगातार बढ़ रही थी. इस समान अवधि में देश के सबसे अमीर 20 फीसदी लोगों की वार्षिक आय में 39 फीसदी का इजाफा हुआ है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
देश के बड़े शहरों में कचरा बीनने वालों के पास पांच फीसदी से भी कम स्वास्थ्य बीमा है, जबकि 79 प्रतिशत सफाई साथियों के जनधन खाते नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ओर से 25 जनवरी 2022 को कचरा बीनने वालों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का बेसलाइन विश्लेषण जारी किया गया. दावा किया गया है कि यह अब तक का सबसे बड़ा असेसमेंट है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
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