मेरा नाम रियांकू कुमारी है, मैं विष्णुपुर ग्राम खजरा पंचायत नालंदा जिला नगरलासा ब्लॉक का निवासी हूं और मैं सिर्फ इतना कहने जा रहा हूं कि अब जो है वह हर लड़की के लिए है। सिलाई मशीन होनी चाहिए और हर लड़के के पास साइकिल होनी चाहिए क्योंकि ये दोनों फैशन गर्ल की सिलाई मशीन और लड़के की साइकिल बन गई हैं तो एक लड़की है जिसने सिलाई सीखी है या नहीं सीखी है जो थोड़ी सी भी है। भले ही वह मशीन चलाना जानती हो, फिर भी घातक बुढ़ापे में रह जाता है, इसका मतलब है कि वह एक अच्छा काम करती है और लड़का वह है जो पैसा लेता है, चाहे वह सास के दहेज में अपने ससुर के साथ कुछ करे या न करे और वह एक बाइक मांगता है, दहेज में अपना तेल देने से भी इनकार नहीं करता है, यह पता चलता है कि ससुराल वालों ने इसे किश्त में ले लिया है, जिसका अर्थ है कि पैसा अभी भी बैंक में है और बाइक पकड़ी गई है। सड़क पर गति करने का मतलब है लाइसेंस न होना या उस गलती पर दुर्घटना होना, तो उसका तेल क्षेत्र बेरोजगार रहता है, इसलिए तेल एकत्र नहीं किया जाता है, और इसका मतलब यह भी है कि पत्नी हमारे समाज में ऐसी स्थिति है, इस वजह से कुछ लोग हैं जो अपनी कमाई से थैला खरीदने या तेल जलाने के लिए अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोग अक्सर यह सुना जाता है कि लालची लोग जो कार लेते हैं, फिर उसे ले जाते हैं और ससुर से उसका तेल और अन्य खर्च मांगते हैं और पत्नी की जांच करते हैं।

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निरंजन कुमार ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बताया कि "मैं कुछ भी कर सकती हूँ" कार्यक्रम की कहानी में गौरी के साथ बहुत गलत हुआ। दहेज प्रथा समाप्त होनी चाहिए। इस प्रथा के आड़ में महिलाओं पर अत्याचार होता है

बेटों की चाह में बार-बार अबॉर्शन कराने से महिलाओं की सेक्शुअल और रिप्रोडक्टिव लाइफ पर भी बुरा असर पड़ता है। उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ भी खराब होने लगती है। कई मनोवैज्ञानिको के अनुसार ऐसी महिलाएं लंबे समय के लिए डिप्रेशन, एंजायटी का शिकार हो जाती हैं। खुद को दोषी मानने लगती हैं। कुछ भी गलत होने पर गर्भपात से उसे जोड़कर देखने लगती हैं, जिससे अंधविश्वास को भी बढ़ावा मिलता है। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि * -------आखिर हमारा समाज महिला के जन्म को क्यों नहीं स्वीकार पाता है ? * -------भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा के आपको क्या सम्बन्ध नज़र आता है ?

दहेज में परिवार की बचत और आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है. वर्ष 2007 में ग्रामीण भारत में कुल दहेज वार्षिक घरेलू आय का 14 फीसदी था। दहेज की समस्या को प्रथा न समझकर, समस्या के रूप में देखा जाना जरूरी है ताकि इसे खत्म किया जा सके। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आपके क्या विचार है ? *----- आने वाली लोकसभा चुनाव में दहेज प्रथा क्या आपके लिए मुद्दा बन सकता है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

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भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

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