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हरियाणा सरकार ने 16 सितंबर 2021 को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से मजदूरी वेतन (हरियाणा) नियम, 2021 मसौदा कोड प्रकाशित किया। ये नियम साप्ताहिक अवकाश, अधिकतम काम के घंटे, ओवरटाइम वेतन, यात्रा भत्ता, और अन्य चीजों के साथ न्यूनतम वेतन निर्धारित करते हैं । नियमों में प्रावधान किया गया है कि जहां कर्मचारियों को एक ठेकेदार के माध्यम से काम पर रखा जाता है, वहां वेतन भुगतान की तारीख से पहले, जो व्यक्ति प्रतिष्ठान का मालिक है, वह ठेकेदार को उनके वेतन का भुगतान करेगा। यानी एक प्रकार से इस मसौदे के अनुसार ठेकेदारी प्रथा को कानूनी प्रमाणिकता दिए जाने की वकालत है जो एक बड़ा बदलाव है ,कम्पनियाँ अधिक संख्या में ठेकदारों के जरिये ही श्रमिक से काम कारने के इक्षुक होंगे ऐसा प्रतीत होता है . तो श्रमिक साथियों आप को क्या लगता है की इस मसौदे का आपके जीवन पर कैसा प्रभाव परेगा , वेतन में कटौती, न्यूनतम वेतम , काम की पहचान के लिए वेतन स्लिप क्या प्रभावी तरीके से सरकार की निगरानी में होता है , इसका लाभ पहले आप उठा पा रहे थे , सरकारी नियमों का उलंघन होने पर आपने कार्य अस्थल पर क्या पाया , क्या सरकारी अधिकारी श्रमिकों की मदद के लिए आगे आगे आते हैं या फिर वो नियोक्ता ही मदद करते हैं, आने वाले दिनों में इस मजदूरी की कमी को कैसे दूर किया जाए आपके सुझाव बहोत लाभकारी हो सकते हैं , आप अपने सभी सुझाव हमारे साथ साझा करें , आपकी पहचान गुप्त रखी जाएगी , आपके अहम् सुझाव और चुनौती से हम श्रमिक मंत्रालयों को अवगत कराएँगे , अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए अभी अपने फ़ोन से दबाएँ नंबर ३ और रिकॉर्ड करें अपनी बात .

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साथियों, क्या आपने इस कोरोना काल के दौरान आपने शिक्षकों को तलाशने की कोशिश की? क्या आपने उनसे उनका हाल जाना? क्या आपके आसपास ऐसे लोग हैं जो पहले शिक्षक थे लेकिन कोविड काल में नौकरी जाने के बाद अब कोई दूसरा काम कर रहे हैं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को शिक्षकों की आर्थिक स्थिति सुधारने पर ध्यान देने की जरूरत है? स्कूल बंद होने और शिक्षकों के ना रहने से आपके बच्चों की पढ़ाई पर कितना असर पड़ा है? अगर आप शिक्षक हैं, तो हमें बताएं कि कोविड काल के दौरान आपको किस तरह की परेशानियां आईं और क्या अब आपके हालात पहले जैसे हैं? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

दोस्तों, राजस्थान सरकार ने तो ये मसौदा तैयार कर श्रम कानून में बदलाव के सुझाव तैयार कर रखें और इसके लिए उनके पास अपना तर्क भी है लेकिन क्या आप इन सुझाव से सहमत हैं की 50% तक नियोक्ता द्वारा कटौती , काम के घंटे तय करना , ओवरटाइम के घंटे और अवकास के सुझाव को सही मानते हैं , आपकी क्या राय है , क्या इससे आप श्रमिकों की जिंदगी में आसानी आएगी या मामला और उलझन पैदा करेगा? काम करते हुए आपने इन समितियों और नियमों का पालन होते हुए आपने क्या पाया ???आप अपने सभी सुझाव रिकॉर्ड करें नंबर ३ दबाकर. याद रखें आप सुझाव और जवाब निति निर्माण में अहम् भूमिका अदा कर सकती है इसलिए आप जो सोचते हैं वो हम तक जरूर पहुंचाएं , रिकॉर्ड करें और सुनते रहें और जुड़ें मोबाइल वाणी की खास पहल के साथ

नमस्कार दोस्तों, पहले कोरोना आया और फिर साथ में लेकर आया लॉकडाउन, जिसने देश में हर गतिविधि को रोक दिया. जिनके घर राशन से भरे थे वे इस वक्त को गुजारते चले गए और जो हर दिन की कमाई पर निर्भर थे वे सरकारी राशन, आम लोगों की दया के भरोसे वक्त गुजारते रहे. अब अनलॉक हो चुका है, प्रवासी मजदूरों को यकीन था कि वे फिर से शहर लौटेंगे और सब ठीक हो जाएगा... पर क्या वाकई ऐसा हुआ है?दोस्तों, हम आपसे जानना चाहते हैं कि क्या आप भी इस संकट का सामना कर रहे हैं? क्या आपको भी रोजगार की तलाश करने में परेशानी हो रही है? कंपनी मालिक क्या कह कर काम देने से ​इंकार कर रहे हैं? क्या कारखानों में काम देने के पहले वैक्सीन लगवाना अनिवार्य कर दिया गया है? अगर आप अब तक को​रोना की वैक्सीन नहीं ले पाएं हैं तो इसका क्या कारण है? क्या वापिस गांव लौटने पर आपको काम मिलने की उम्मीद है? अगर आपको पहले की तरह रोजगार नहीं मिल रहा है, तो परिवार का भरण पोषण कैसे कर रहे हैं? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

दोस्तों, लॉकडाउन के अकेलेपन को हम सबने झेला है पर खतरा अभी टला नहीं है और हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वैज्ञानिक कोरोना की तीसरी लहर आने का अंदेशा जता चुके हैं. ऐसे में क्या इस तरह की लापरवाही ठीक है? हमें बताएं कि आखिर क्यों सार्वजनिक स्थलों पर इतनी ज्यादा आवाजाही हो रही है? क्या स्थानीय प्रबंधन इसे रोकने के लिए कोई प्रयास कर रहा है? क्या केवल चालान काटने और जुर्माना लगा देने भर से कोरोना के प्रति बरती जा रही लापरवाही को रोका जा सकता है या फिर इसके लिए आम लोगों का जागरूक होना ज्यादा जरूरी है? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

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चुनावी रैलियों से कोरोना संक्रमण दूर करने का शोध समाप्त हो गया। प्रजातंत्र में तंत्र को बचाना प्रजा से ज़्यादा ज़रूरी हो गया जबकि मतदान का अधिकार छोड़कर प्रजाओं में कोई सामान्यता नहीं दिखी| कॉम्पनियों में खपने वाले मज़दूर और खपाने वाले पूंजीपतियों में से मज़दूर हमेशा की तरह प्रजातंत्र में प्रजा की ही श्रेणी में नज़र आया आये।

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