जलवायु परिवर्तन का असर फसल चक्र पर पड़ा है। इसके असर से फसल का उत्पादन प्रभावित हुआ है। इस साल मार्च महीने में गेहूं दाने के दूध वाले स्टेज में हीट वेब चलने लगा। इससे गेहूं के दाने पकने की जगह सूख गये। जिसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ा है। किसानों के अनुसार विगत साल की तुलना में इस साल गेहूं उत्पादन में गिरावट आयी है। जिससे किसानों को जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगतना पड़ा है। विगत साल जब धान के बिचड़े गिराने का समय आया तब सूखे की स्थिति थी। नर्सरी में धान के बिचड़े तैयार करने के लिए किसानों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। सिंचाई के बावजूद बड़े पैमाने पर धान के बिचड़े सूख गये। जिससे किसानों को दुबारा धान के बिचड़े तैयार करने में काफी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। जलवायु परिवर्तन से मानसूनी बारिश भी प्रभावित हुआ है। जब बारिश की दरकार होती है तब सूखे से किसान त्रस्त रहते हैं। यह सब बदलाव जलवायु परिवर्तन के कारण समस्या खड़ी हो रही है। जलवायु परिवर्तन से उपजी स्थिति के कारण किसान भीरबी,खरीफ व गरमा मौसम में जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिखता है। फिलहाल गरमा सीजन चल रहा है। लेकिन बारिश नहीं होने से किसानों को गरमा की खेती करने में परेशानी हो रही है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से फसल चक्र प्रभावित होने से उत्पादन प्रभावित हुआ है। इधर कृषि विज्ञान केन्द्र के मौसम वैज्ञानिक डॉ. नेहा पारीक ने बताया कि विगत चार वर्षों से मौसम में हो रहे परिवर्तन से फसल चक्र पर प्रतिकूल असर पड़ने से कृषि उत्पादन बाधित हो रहा है। खरीफ फसल में लंबी अवधि के धान के प्रभेद के स्थान पर कम अवधि 90 से 100 दिन वाली प्रभेद का चुनाव करें। कहा कि लंबी अवधि के धान में अधिक पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है। वहीं कम अवधि वाले धान की किस्म में पानी की कम आवश्यकता होती है। किसानों कि धान की रोपनी जुलाई में ही कर लेनी चाहिये। इसके बाद धान की रोपनी नहीं करें। अगस्त माह में धान की रोपनी करने से उत्पादन कम होता है।