बुक स्टॉल की परंपरा अब समाप्त होती जा रही है। रेलवे स्टेशन पर संचालित होने वाला बुक स्टॉल बंद हो चुका है। पहले सड़क किनारे भी पत्रिकाएं व किताबें बेची जाती थीं।लेकिन वे भी अब इक्का-दुक्का जगह ही सिमट कर रह गये हैं।ऐसे में बड़े साहित्यकारों, इतिहासकारों व अन्य विद्वानों की अच्छी किताबें मिलनी मुश्किल हो गयी हैं। खासकर शोध करने वाले छात्रों के लिए ऐसी किताबों की आवश्यकता होती है। हालांकि शहर के मेन रोड स्थित नवयुवक पुस्तकालय में ऐसी किताबों को सहेजने का प्रयास जरूर शुरू किया गया है। किताब की दुकानों में स्कूलों की किताबें व स्टेशनरी आइटम की हो रही बिक्री शहर में संचालित किताब की दुकानों में स्कूलों की किताबें, एनसीईआरटी के बुक व स्टेशनरी आइटम ही उपलब्ध हैं। मेन रोड के एक किताब विक्रे ता का कहना है कि स्कूली सिलेबस की किताबों व उससे संबंधित राइटर की किताबों की बिक्री होती है।इनकी ही डिमांड होने के कारण इसे ही मंगाया जाता है।स्टेशनरी दुकानों में पत्रिकाएं मिल जाती हैं।हालांकि यहां साहित्यिक किताबें नहीं मिल पातीं। नवयुवक पुस्तकालय में अच्छी किताबों को सहेजने का प्रयास शहर के मेन रोड स्थित नवयुवक पुस्तकालय के जीर्णोद्धार के बाद यहां लाइब्रेरी में अच्छी किताबों को सहेजने का प्रयास शुरू है। कई किताब आ भी गयी हैं। लाइब्रेरियन मुकेश मधुकर बताते हैं कि यहां कई किताबें आयी हैं व आने वाली हैं। लाइब्रेरी में शोध को लेकर रेफ्रेस बुक, नॉवेल हैं।अभी छात्रों का सदस्यता अभियान चल रहा है।एक हजार रुपये में एक साल के लिए सदस्य बनाया जा रहा है।यहां उपलब्ध किताबों में मसलन,डॉ. शिव प्रसाद शर्मा की ‘शोषित बालश्रम, परिदृश्य-प्रतिबिंब’, काका कालेकर की‘सत्याग्रह विचार, युद्धनीति’,विलियम शेक्सपियर की किताब,नीतीन गोयल की ‘विज्ञान की जादुई दुनिया’,डॉ. इश्वर दत्त शील की ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’,डॉ. चंद्रभान राही का‘पंचतंत्र की मूल कहानियां’,देवदास विस्मिल की ‘दरख्तों के लंबे होते साये’,डॉ. युगेश्वर लिखित‘भारत का समाजवादी आंदोलन’,राहुल संस्कृतयायन के ‘यात्रा के पन्ने’,एन आर अय्यंकर लिखित‘महात्मागांधी,जयशंकर प्रसाद लिखित ‘तितली’व अन्य किताबें हैं। पहले स्टेशन से लेकर कई जगह बिकती थी पत्र-पत्रिकाएं जिले के वरीय कवि साहित्यकार प्रसाद रत्नेश्वर के अनुसार पहले रेलवे स्टेशन पर ए एच व्हीलर की दुकान के साथ साथ अग्रवाल मार्केट, मेन रोड में कादिर भाई, कुंडल प्रेस , सुभाष पार्क के सामने, बलुआ दुर्गा मंदिर के समीप पुस्तकें और पत्र पत्रिकाएं बिकती थीं। पुस्तकालय आबाद थे। पुस्तकालय अनुदान योजना के अंतर्गत किताबें आतीं थीं। समय के साथ पुस्तकालय बंद होते गए। एकाध बचे भी उनमें नई जिल्द का अभाव , पुरानी पुस्तकों और पांडुलिपियों का संरक्षण नहीं हो पाया। महाविद्यालयों में स्थापित पुस्तकालयों में छात्रों की रुचि घट गई। गांधी संग्रहालय और कालेजों के हिंदी विभागों में उपलब्ध साहित्यिक पुस्तकों की तुलना में उसके पाठक नहीं हैं।