जिला में शहर से लेकर ग्रामीण इलाके में कुत्तों का आतंक है तो कभी कभी बंदर का भी आतंक कायम हो जाता है। जिसको लेकर कई बार सीएस ने नगर निगम को पत्र लिख कर लावारिस कुत्तों को शहर से बाहर करने और बंध्याकरण करने के लिये लिखा है। वहीं कई मोहल्ले के लोगों ने भी वन विभाग को बंदर को पकड़ने के लिये कहा है। मगर अब तक न तो लावारिस कुत्ते हटाये गए और न बंदर ही पकड़ा गया। नतीजतन लावारिस कुत्तों व बंदर के काटने से जख्मी सदर अस्पताल में इलाज के लिये हर रोज आ रहे हैं।जिसका मलहम पट्टी कर एंटी रैबीज की सुई देकर भेज दिया जा रहा है।अलबत्ता महीने में दो तीन गम्भीर जख्मी भी आते हैं। हर महीने एक हजार से अधिक को लगता है एंटी रैविज का टीका जिन्हें इलाज के लिये भर्ती किया जाता है। जिसे 24 घंटे के बाद डिस्चार्ज कर दिया जाता है।अस्प्ताल सूत्रों के अनुसार फिलहाल एंटी रैबीज का इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। अस्पताल के स्टोर में तीन हजार वायल है। कम होने से पहले सेंटल स्टोर से दवा का वायल मंगा लिया जाता है। करीब 10 हजार से अधिक एंटी रैबिज का वायल स्टॉक में है। 50 हजार वायल का इंडेंट किया गया है। बताते हैं यह दवा सरकार की एजेन्सी बीएमसीआईएल के द्वारा आपूर्ति की जाती है। कभी कभी समय पर दवा की आपूर्ति नहीं होने पर इमरजेंसी में रोगी कल्याण समिति की राशि से यहां अस्पताल के फण्ड से भी खरीदारी होती है मगर ऐसा मौका बहुत ही कम आता है। दवा नहीं रहने की स्थिति में एंटी रैबीज का सुई निजी दुकान या रेड क्रॉस से प्रति वायल 300 रुपये की ़दर से मरीज खरीद कर लेते हैं। बताया जाता है कि कुत्ता या बंदर के काटे हुये गम्भीर मरीज को संक्रमण वार्ड में भर्ती कर इलाज किया जाता है। ऐसा केस पिछले कई महीनों से नहीं मिला है मगर इलाज के लिये वार्ड बनाया गया है। चार बेड का वार्ड है। सिविल सर्जन डॉ अंजनी कुमार ने बताया कि एंटी रैबिज का इंजेक्शन पर्याप्त संख्या में स्टॉम में उपलब्ध है। इलाज के लिये बेड से लेकर दवा की पूरी व्यवस्था है।