महाशिवरात्रि के मौके पर लगने वाले सूफी मदार मेला आरम्भ हो चुका है। मेले में धर्मों के बीच का अंतर मिट सा जाता है। सूफी मत से जुड़े होने के कारण इसमें हिंदू व मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग भारी संख्या में जुटते हैं। बताया जाता है कि मदार बाबा अर्थात बहिउद्दीन कुतबुल शाह अफगानिस्तान के रहने वाले थे। मदार शाह दो सदी पूर्व यहां पहाड़ियों में साधना करने आए थे। उन दिनों नेपाल में राजा पाल्पालिसेन का शासन था। जमींदार माधव पंजियार व शेर बहादुर अमात्य ने उनकी भक्ति भावना से प्रभावित होकर साधनास्थली के लिए भूमि दान दी थी। बाबा के वर्तमान शिष्य मौलाना अमिरूल्लाह अंसारी बताते हैं कि मदार बाबा साधनाकाल में मदार अर्थात अकवन के दूध का ही सेवन करते थे। संभवत इसी वजह से उन्हें मदार बाबा कहा जाने लगा। मेला आयोजन समिति सह दरगाह कमेटी के कोषाध्यक्ष रेयाजुल अंसारी ने बताया कि मदार मेला अपनी भव्यता के साथ आरंभ हो गई है। मेले में आने वाले धर्मावलंबियों के खाने-पीने व रहने की व्यवस्था महलवारी स्थित मजार पर दरगाह कमेटी की तरफ से की जाएगी। मेला फाल्गुन मास की पंचमी तिथि से त्रयोदशी तक रहता है। सात पहाड़ियों को करना पड़ता है पार: भारत-नेपाल सीमा पर गंडक बराज फाटक बांध से लगभग तीन किलोमीटर दूर महलवारी क्षेत्र में उर्स ए मदार साहब बाबा का भव्य मेला हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आठ से 18 फरवरी तक लगेगा। महलवारी स्थित मस्जिद से यात्रा शुरू होती है। छोटी-छोटी सात पहाड़ियों को पार करने के क्रम में गुजर बाबा के दर्शन के पश्चात नकदहरवा पहाड़ को पार करते हुए श्रद्धालुओं की यात्रा पुरातन मजार पर खत्म होती है। आज भी होता है यहां गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन मदार बाबा स्थान पर आज भी पुरातन गुरु शिष्य परंपरा जीवंत है। अब तक बाबा के पांच शिष्य इस परंपरा का निर्वाह करते रहे हैं। इनमें गननी शाह, बहार शाह, कुर्बान अली, मोहम्मद अली शाह व वसीर अली शाह शामिल हैं। माना जाता है कि महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर उनकी साधना संपन्न हुई। देवाधि देव महादेव ने उन्हें दर्शन देकर दीन दुखियों को कृतार्थ करने का वरदान दिया। बाबा ने भगवान शिव के दिए वरदान को अक्षरश निभाते हुए मानवता के उद्धार में अपना जीवन लगा दिया। बाबा की परंपरा आज भी कायम है। मार्ग दुरुह पर मन्नतें होती हैं पूरी पिछले पांच साल से मदार बाबा के मेले में जाने वाले शंकर महतो ने कहा कि मेरी पत्नी काफी दिनों तक बीमार रही थी। गांव के ही एक आदमी ने कहा कि मदार बाबा का प्रसाद लाकर खिलाओ, ठीक हो जाएगी। वहीं मैंने किया और लाभ हुआ। तब से हर साल दोनों व्यक्ति मेला जाते हैं। मो कुदरुस ने कहा कि मैं दस साल से अधिक समय से मदार बाबा के मेले में जाता हूं। मेरे घर की बरक्कत मदार बाबा की देन है।