शहर का एमएस कॉलेज को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस माना जाता है। उत्तर बिहार के प्रीमियर कॉलेजों में इसकी गिनती होती है। वर्ष 2013 में कॉलेज का पहला नैक मूल्यांकन हुआ था। जिसमें कॉलेज को ‘बी’ ग्रेड मिला। लेकिन पांच साल बाद अगले मूल्यांकन में ही इसका ग्रेड ‘बी’ से गिरकर ‘सी’ पर पहुंच गया। जो इस महत्वपूर्ण संस्था के लिए बड़े झटका के समान था। जिससे इसके साख पर बट्टा लगा। अब फिर से तीसरे चक्र के नैक मूल्यांकन में बेहतर करने को लेकर पहल शुरू हुई है। शिक्षकों की है भारी समस्या कॉलेज कभी शिक्षकों से गुलजार रहता था। यह इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां शिक्षकों के स्वीकृत पद 110 है। लेकिन अभी शिक्षकों की संख्या महज 26 है। मतलब कुल संख्या के एक तिहाई से भी कम। इसका असर शैक्षणिक स्थिति पर पड़ रहा है। कई विषयों में एक तो कुछ में दो से तीन शिक्षक हैं। गेस्ट फैकल्टी भी सेवा ली जा रही है। नैक के जरूरी मापदंड में कॉलेज है पीछेनैक से बेहतर ग्रेडेशन पाने के लिए जरूरी मापदंडों में अभी भी कॉलेज पिछड़ा हुआ है। यहां ऑफिस व लाइब्रेरी का ऑटोमेशन नहीं हो पाना बड़ी समस्या है। लाइब्रेरी को और समृद्ध करने की जरूरत है। वहीं, शिक्षकों के रिसर्च प्रोजेक्ट नहीं चल रहे। अभी मात्र वनस्पति शास्त्र में ही रिसर्च प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ है। प्लेसमेंट सेल भी पूरी तरह फंक्शनल नहीं है। पूर्व में बना आईसीटी लैब व लैंग्वेज लैब का छात्रों को लाभ नहीं मिल पा रहा। द्वितीय चक्र के मूल्यांकन के पूर्व स्टूडेंट इंटरेक्शन में भी कमी रही थी। इन सब विन्दुओं पर सुधार की जरूरत है।
