बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से संजीवन कुमार सिंह मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि मानव शरीर के लिए आवश्यक संतुलित आहार लंबे समय तक नहीं मिलना कुपोषण कहलाता है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। जिससे वह आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। कुपोषण प्राय: पर्याप्त संतुलित आहार के अभाव में होता है।बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहां तक कि अंधत्व भी कुपोषण की ही दुष्परिणाम होते हैं। इसके अलावा ऐसे सैंकड़ों रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या फिर असंतुलित भोजन ही होता है। बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए उसकी मां को स्वस्थ होना जरूरी है। स्वस्थ लड़की बड़ी होकर स्वस्थ मां बन सकती है। सबसे पहले बेटी के खान पान का ख्याल उतना ही रखना चाहिए, जितना बेटों को परिवार में रखा जाता है। बेटियों को खाने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स होना चाहिए। लड़कियों के मासिक धर्म के समय आयरन जरूर देना चाहिए, जिससे उनके शरीर में खून की कमी नहीं हो पाए। इसके अलावा स्वस्थ मां बनने की उम्र 18 वर्ष से 35 वर्ष तक होनी चाहिए। दो से ज्यादा बच्चे नहीं होने चाहिए। दो बच्चे के बीच में 3 वर्ष का अंतर होना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान महिला का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण होना बहुत जरूरी होता है। प्रसव से पहले सभी जांच करा लेनी चाहिए। संस्थागत प्रसव में सबसे ज्यादा फायदा यह रहता है कि बच्चा अगर कमजोर रहता है तो उसकी देखभाल के लिए बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध होते हैं।