बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से निकिता मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि बेटी के जन्म पर पिता मायूस होता है ,पुरुष प्रधान समाज में बेटी को बोझ समझा जाता है जबकि बेटियां समाज एवं परिवार को सुशोभित करती है। बेटी के बगैर परिवार अधूरा रहता है। जिस परिवार में बेटी नहीं होती वह परिवार अधूरा होता है फिर भी बेटी के जन्म पर पिता दुख प्रकट करता है। नव दंपति का पहला संतान बेटी होती है उसे माता पिता लक्ष्मी से संबोधित करते हैं लेकिन अगर लगातार दो से तीन बेटियां जन्म ले लेती है तो पति पत्नी और सास ससुर दुखी हो जाते है और घर की बहू प्रताड़ना का शिकार होने लगती है। जबकि लगातार बेटी के जन्म होने से उसमें बहू का कोई दोष नहीं है कभी-कभी तो लगातार बेटी होने पर पत्नी एवं बहू को घर से निकाल दिया जाता है अगर वह नहीं निकलना चाहती है तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। समाज की अगर बात की जाए तो सबसे अधिक प्रताड़ित घर की बेटियां और बहु हो रही है बेटी की पढ़ाई लिखाई ,जन्म दिवस को लेकर हमेशा पिता का नजर गलत होता है जबकि बेटा का पढ़ाई लिखाई आदि पर अभिभावक का नजर नहीं जाता है। बेटी का काम घर में चौका बर्तन करना और माता-पिता का सेवा करना माना जाता है फिर भी बेटी समय निकालकर पढ़ाई करने का पूरा प्रयास करती है और रिजल्ट भी बेटा से अच्छा लाती है फिर भी बेटा का मान सम्मान घर में अधिक होता है बेटी चाहती हैं कि वह आत्मनिर्भर बने लेकिन पुरुष प्रधान समाज उस में बाधक बन रही है