साथियों,स्वागत है आपका "अब मैं बोलूंगी"कार्यक्रम में. जैसा की आपको पता है कोरोना वायरस की वजह से संगठित क्षेत्रों और असंगठित क्षेत्रों की नौकरियों में भारी कमी आई है। गाँवों से आने वाली महिलाएं दिल्ली, मुंबई, लुधियाना और बंगलुरु जैसे शहरों में रोजाना या मासिक तनख़्वाहों पर काम करती हैं। अक्सर इन महिलाओं और नौकरी देने वालों के बीच किसी तरह का क़ानूनी क़रार या पंजीकरण नहीं होता है। सबसे ज्यादा महिलाएं उत्पादों की पैकेजिंग और कपड़ो की सिलाई-बुनाई जैसे काम करती हैं। आज हम उनके बारे में ही बात करने वाले हैं तो चलिए बिना देर किए शुरू करते है ये खास कड़ी.महिलाएं अगर अपने हुनर से सजृन कर सकती हैं तो उसे मिटाने का अधिकार भी रखती हैं और इस मामले में तो हम पहले ही आपको बता चुके हैं कि कंपनी मजदूरों से बनती है, वहां उनके कर्तव्य हैं तो बहुत से अधिकार भी हैं। अपने अधिकार और हक के लिए एक होना बगावत नहीं कहलाती बल्कि ये ताकत का परिचय देती है। इस विषय पर अगर आपका कोई अनुभव है, तो हमें ज़रूर बताएं अपने फोन में नंबर 3 दबाकर