सांझा मंच के माध्यम से, अख्तर जी से जब आगे पूछा गया कि वे ,अकेले रहते है या परिवार के साथ, तो वे बताते हे कि अगर हम अपने बच्चो को यहाँ रखेंगे तो गुज़ारा नई हो पायेगा ,क्यूकी कमरे का किराया 3 , 4 हजार रुपए है। और उनका तनख़्वा 10 ,12 हजार रुपए है , और बच्चो को पढ़ाना भी है। इसीलिए बच्चो को गॉव में ही रखता हू । जो 2 ,4 हजार रुपए होता है उसे घर में भेज देता हू। जिससे उनका भरण पोषण हो सके। अख्तर जी बताते हे कि 10 साल पहले दिल्ली आए थे। जो उम्मीद वे लेकर दिल्ली आए वो पूरा नहीं हो पाया। अख्तर जी बताते है कि जब वे नौकरी कर रहे थे तो उससे उनका घर चल रहा था लेकिन 3 माह से बहुत दिक्कत हो गया है। अख्तर जी बताते हे कि जी. एस. टी. और नोट बंदी से ही नौकरी में कमी आई है। वो बताते हे , की पिछले 10 वर्षो में सबसे ज़्यादा दिकक्त अभी के वक़्त में हो रहा है।अख्तर जी बताते है सरकार ने कुछ अच्छा काम किया है। जैसे उनका खाता बैंक में खोल कर तनख्वा सीधा उसी में भेजना, जिससे तनख्वा कम दे कर और ज़्यादा दिखाया जाता था वो बंद हो गया है।