अर्पणा बाड़ा काके प्रखंड रांची से झारखण्ड मोबाइल वाणी पर विस्थापन के सम्बन्ध में बताया की झारखण्ड में विस्थापन एक राजनीती मुद्दा हैं जिस पर सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया हैं हैं और जिस पर लाखो लोगो को विस्थापित कर उन जमीनों पर बड़े घरानों को बसने का कार्य कर रही हैं जिस कारन आदिवासी समुदाय खतरे में हैं जिसका प्रत्यक्ष उधाहरण जनवरी २०१२ में नगदी में विस्थापन सरकार ने किया हैं जहाँ पर २१०० परिवार जिनका जमीन २२७ एकड़ जमींन सरकार ने छिनने की कोशिश की और उस पर आई आई एम् बनाने का कार्य चालू कर दिया हैं पर आदिवासियों ने अपन आन्दोलन चालू रखा और सरकार के कहने के अनुसार की यह जमीं १९५७-५८ में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के विस्तारीकरण के लिए अधिग्रहित की गयी थी मगर आर ती आई के अंतर्गत सूचना मांगने पर राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने इंकार कर दिया की यह जमीं उन्होंने अधिगृहित की थी और इस का कोई दस्तावेज उनके पास नहीं थी.भू-अर्जन के अधिकारीयों के पास भी इस के सम्बन्ध में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं थे की क्यों इस जमींन का अधिग्रहण सरकार के द्वारा किया गया था. दूसरी ओर यह कानून में उल्लेख हैं की अगर जमींन अधिग्रहण के ३० वर्षो के अन्दर उस पे किसी भी तरह का कार्य नहीं होता हैं तो वह जमीं विस्थापितों को लौटा दी जाती हैं परन्तु ५० वर्ष बिट जाने के पश्चात भी किसी भी तरह का कार्य सरकार के द्वारा नहीं किया गया हैं.सरकार ने इस जमीं का मूल्य भी जमा करदिया जो की १३३७३२ रुपये थी जिसकी जानकारी किसी भी ग्रामीणों को नहीं थी.नगदी की जमीन कृषि योग्य जमीन हैं जिससे वाहने निवासी कृषि कर अपना जीवन यापन चलाते हैं.इस सम्बन्ध में ग्रामीण बहुत सारे नेताओं से मिले मगर उन्होंने सिर्फ आश्वासन दिया किया कुछ भी नहीं. अंत में सरकार के आई आई एम् बनाने का फैसला वापस लिया मगर इसकी कोई लिखित जानकारी उनके पास नहीं हैं.