अवनीश दुमका,काठीकुंड से झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है की प्रति वर्ष की तरह 8 मार्च आया और चला गया.365 दिन में एक दिन लोगो द्वारा इस दिन को सेमिनार,जुलुस,समारोह और चर्चा कर मनाते है और फिर अगले वर्ष के लिए इंतजार करते है.क्या हमारा जागरूक समाज आधी आबादी को सबल बनता रहेगा या कोई सार्थक पहल ईमानदारी पूर्वक करेगा।ऐसा भी नहीं है की महिलाओ को सबल बनाने के लिए कुछ नहीं किया गया पर हुआ है वह काफी कम है परिवार,देश और समाज के विकास में इन्हे बराबर की भागीदारी देना अभी बाकि है कही ऐसा तो नहीं की हम सभी पिछड़ी मानसिकता से ग्रसित है देश का विकास चाहने वाले महिलाओ को बराबर का हक़ दो केवल 8 मार्च को ही नहीं प्रति दिन महिला दिवस मनाओ,और जागरूक करो.