झारखण्ड राज्य के रांची से दृष्टि वाधित महिला नाज़िया मोबाइल वाणी और पंचायत नामा के साथ अपनी आपबीती साझा करते हुवे कहती हैं, कि ये एक साधारण स्कूल से अपनी दशवीं की पढाई पूरा कि। जब ग्रेजुवेशन कर रहीं थी तभी इनकी आँखों में कुछ दिक्कत होने लगी और धीरे-धीरे इनकी आँखों क रौशनी ख़त्म हो गई। नाज़िया ने कभी भी अपनी कमी को कमी नहीं समझा। कुछ दिनों के बाद इन्होने कंप्यूटर सीखा और एक शिक्षिका के रूप में लगभग दस वर्षों तक बच्चों को कंप्यूटर भी सिखाया। साथ ही नाज़िया ने कंप्यूटर संस्था के लिए खुद का रजिस्टेशन भी करवाया। नाज़िया ने कई कंपनियों और संस्थाओं में नौकरी के लिए इंटरव्यू भी दिया पर कही भी इन्हे नौकरी नहीं मिला। इनकी विकलांगता के कारण सबने कहा की आप विकलांग हो आपको दिखाई नहीं देता तो आप कैसे काम करोगे। तभी अचानक कहीं से नाज़िया को मालूम हुआ की झारखंड के रांची स्थित एक कम्पनी में दो आवेदन निकला है दृष्टिबाधितों के लिए। नाज़िया ने ऑफिस में फ़ोन कर अपना रजिस्ट्रेशन करवाया। कुछ दिनों के बाद ऑफिस से फोन आया और नाज़िया को अपना बायोडाटा जमा करने को कहा गया। नाज़िया ने अपना बायोडाटा जमा किया और इंटरव्यू भी दिया। और उन्हें हमारी वाणी में एक मॉडरेटर के रूप में नौकरी मिल गई। काम करने में नाज़िया को कोई दिक्क्त नहीं होती है क्योंकि जिन लोगों को कंप्यूटर में दिखाई देता है वे देख कर काम करते हैं और जिन्हे दिखाई नहीं देता वो टेक्नॉलजी सुविधा के साथ सुनकर काम करते हैं। काम पर आने जाने में नाज़िया को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे-यदि घर में कोई ऑफिस पहुंचाने वाला ना हो तो ऑफिस समय पर नहीं जा पातीं हैं। इसी प्रकार ऑफिस से घर परिवार के सदस्य ही लेकर आते हैं।नाज़िया अन्य लोगों को यह सन्देश देती हैं कि कोई भी अपनी विकलांगता को अपनी कमजोरी ना समझे बल्कि उसे अपनी ताकत बनाएं। यदि कोई दिव्यांग नहीं देख सकते तो क्या हुआ वे हर वो काम को कर सकते हैं जिसे सम्पूर्ण व्यक्ति करते हैं।