झारखण्ड राज्य के बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड से महावीर महतो जी मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं, कि झारखण्ड में रोचक मनमोहक झूमर नृत्य संगीत मनभावन है। झारखण्ड धरती का एक ऐसे भू-भाग का हिस्सा है जहाँ तरह-तरह के भाषा और संस्कृति है।उसी जनजातीय भाषाओं में से एक भाषा है खोरठा जो मुख्य रूप से हज़ारीबाग़,गिरिडीह,बोकारो,धनबाद,कोडरमा,चतरा,गोड्डा,पाकुड़,रामगढ़, गढ़वा,पलामू,डाल्टेनगंज सहित कई जिलों में बोला जाता है। आज पूंजीवाद के लालच में लोग अपनी संस्कृति भाषा,जन-जंगल,जमीन को बेचने में लगे हुए हैं। यदि सरकार इन जनजातियों की भाषा संस्कृति की कदर नहीं करती है, तो आने वाले समय में यह संस्कृति समाप्त हो जाएगी। अतः सरकार को जनजातियों की नीतियां बनाने में उनके सुझाओं का स्वागत करना होगा। क्योंकि प्रकृति से जनजातियों की संस्कृति जुड़ी हुई है। करमा पर्व सरहुल,सोहराय,मोहरी जैसे पर्व त्यौहार प्रकृति से जुड़े हैं उनका चलना ही नृत्य और बोलना ही संगीत है। हर क्षेत्र और हर प्रान्त की अपनी भाषा,संस्कृति और अपनी मिटटी की महक होती है। हमारा हिंदुस्तान कई भाषाओं,संस्कृति,वेशभूषाओ में झलकता है।