कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यंत महत्वपूर्ण पदार्थ हैं। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का 35 % से 40 % भाग कोयलें से प्राप्त होता हैं। ऐसे में अगर हम कोयले की उपलब्धता की बात करे तो देश के कई राज्यों में कोयला उपलब्ध है। और इन मे से झारखण्ड भी एक है जहाँ कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। और शायद यही वजह है कि राज्य के कोयला देश भर के विभिन्न कल कारखानों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है । इस बात को ध्यान रखते हुए कोलइंडिया द्वारा बेरोजगारी को दूर करने के लिए कारखानों में सस्ते दर पर कोयला आबंटित करती है।जिसे कोयला माफिया बाजार में अधिक कीमत में क्रय-बिक्रय करते है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कारखानों के नाम से आबंटित कोयले से क्या वाकई में बेरोजगारों को रोजगार मिल रहा है..? क्या सरकार की यह पहल सही साबित हो रही है...? वर्तमान स्थिति यह हैं कि फर्जी तरीके से कारखाने के नाम पर सस्ते दर में कोलइंडिया से कोयला खरीदते हैं. जिसका उपयोग किस कार्य में हो रहा है इसकी कोई जाँच नहीं होती है...आखिर इसके पीछे मुख्य क्या वजह है ?कारखाने के नाम पर ख़रीदा गया कोयला का इस्तेमाल क्या कारखानों में किया जाता है...? क्या प्रशासन कारखानों के कागजों की जाँच अपने स्तर से करती है...? क्या खनिज विभाग और स्थानीय पुलिस की मुखबिरी तंत्र फेल हो गई है जिसके कारण कोयले की खुलेआम खरीद फरोख की जाती है..? इस तरह से कोयले की हो रही चोरबाजारी पर क्या प्रसाशन की नजर नहीं रहती है...? प्रशासन द्वारा कारखानों के नाम पर कोयले की चोरबाजारी को रोकने के लिए क्या कठोर कदम उठाने की जरुरत है...?