दोस्तों..छोटी उम्र की अठखेलियाँ हमें हमेशा याद रहती है।रेत पर घर बनाना हो या गुड्डे-गुड़ियों का खेल। इस खेल-खेल में हम कब बड़े हो जाते है,पता ही नहीं चलता ? इसी गुड्डे-गुड़ियों के खेल को जब हम अपने बच्चों के जीवन में हक़ीक़त में उतार देते है, तब दोनों का जीवन दुखमय हो जाता है।एक तरफ जब हम विकास और उन्नति की बात करते है ,महिला-पुरुष के समानता की बात करते है तो वही दूसरी तरह हम अनेको सामाजिक बुराइयों को जान-बुझ कर कभी परंपरा की आड़ में ,कभी आर्थिक मज़बूरी के नाम पर तो कभी सामाजिक दबाव के नाम पर अनदेखी कर देते है।और उन्ही बुराइयों में से एक है बाल विवाह...बाल-विवाह हमारे समाज में फैली एक ऐसी कुप्रथा है जिसे मानव अधिकारों के दुरपयोग के रुप में देखा जाना चाहिये।क्योंकि ये जबरन शादी का ही एक रुप है।भारतीय कानून के अनुसार, बाल विवाह वो है जिसमें लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम और लड़के की आयु 21 वर्ष से कम हो। श्रोताओ आपके अनुसार समाज में मौजूद इस कुप्रथा के पीछे का मुख्य वजह क्या है ? इस कुप्रथा को रोकने के लिए तो कई सारे कानून बने हुए है, लेकिन क्या वाकई में यह कानून धरातल पर उतर रहे है ? क्या सिर्फ कानून बनाने से यह प्रथा खत्म हो जाएगी ?इसके प्रति हमारा उत्तरदायित्व क्या होना चाहिए ? क्या वजह है कि हम इस सामाजिक कुरीति के प्रति अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते है..?