बरियारपुर के चौक-चौराहे तिलकुट की सोंधी सुगंध से महक रहा है।बरियारपुर में दर्जनभर से अधिक तिलकुट की दुकानें खुल चुकी हैं।यहां के कारोबारी गया से कारीगरों को बुलाकर तिलकुट बनवा रहे हैं।इन दुकानों में तिल और चीनी एवं तिल व गुड़ के तगाड़ से तिलकुट बनाया जा रहा है। मकर संक्रांति का पर्व वैसे तो 14 जनवरी को है।मकर संक्रांति पर्व आने में अभी करीब एक महीना का समय है। लेकिन तिलकुट बनाने का कार्य तेजी से किया जा रहा है। तिलकुट बनाने वाले कारीगर चीनी, गुड़ और तिल की धींगामस्ती में लगे हुए हैं। कहीं पर कड़ाहा में चीनी खौल रही है और कहीं गुड़। कहीं गुड़ या चीनी के तगाड़ के साथ तिल की कुटाई हो रही है। कारीगर दिन-रात एक कर बेहतर से बेहतर क्वालिटी बाजार में उतारने में जुटे हुए हैं। मकर संक्रांति से पहले ही यहां पर तिलकुट की मांग बढ़ जाती है। बल्कि यह कहें कि ठंड शुरू होते ही बरियारपुर में तिलकुट बनने लगता है। तिलकुट के खुदरा एवं थोक व्यवसायी संतोष कुमार कहते हैं कि आमतौर पर ठंड शुरू होते ही तिलकुट बनने लगता है। यहां के तिलकूट की अलग पहचान है।उन्होंने बताया कि खोवा का तिलकुट 300 रुपये और बगैर खोवा का तिलकुट 220 रुपये किलो की दर से बेचा जा रहा है। वे कहते हैं कि लोग गुड से बने तिलकुट को भी खूब पसंद करते हैं।