तापमान में निरंतर बढ़ोतरी परेशानी का सबब बनता जा रहा है. पिछले कुछ दिनों में लू पीड़ितों की संख्या में अचानक वृद्धि को देखते हुए कार्यकारी निदेशक राज्य स्वास्थ्य समिति मनोज कुमार ने सभी जिलों के सिविल सर्जन, मेडिकलकॉलेजों के सुपरिटेंडेंट एवं अपर मुख्य चिकित्साधिकारी को पत्र लिखकर लू प्रबंधन पर दिशा निर्देश जारी किया है. पत्र के माध्यम से बताया गया है कि लू पीड़ितों को इसकी रोकथाम की सटीक जानकारी प्रदान कर, सही समय पर बेहतर चिकित्सकीयईलाज मुहैया करा कर एवं लू पीड़ितों के सही आँकड़ों की रिपोर्टिंग से लू पीड़ितों को राहत पहुंचाई जा सकती है. साथ ही इससे प्रत्येक वर्ष लू से ग्रसित होने वालों की संख्या में कमी भी लाई जा सकती है. पत्र के जरिए स्वास्थ्य केन्द्रों पर कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों की लू प्रबंधन पर क्षमता वर्धन कराने की बात कही गयी है. साथ ही एएनएम एवं आशाओं को लू के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं एवं इसकी रिपोर्टिंग को लेकर जिला स्तरीय सभी प्रशिक्षणों में एक सेशन रखने की बात बताई गयी है.लू के उपचार के लिए जीवन रक्षक दवाइयाँ जैसे आईवीफ्लूइडस, ओआरएसकी उपलब्धता ,स्वास्थ्य केन्द्रों पर शुद्ध पेय जल की उपलब्धता, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, जरुरत पड़ने पर जिला अस्पताल एवं मेडिकलकॉलेजों में अतिरिक्त एवं आईसोलेशनबेड की उपलब्धता के साथ स्वास्थ्य केन्द्रों पर नियमित बिजली की व्यवस्था सुनिश्चित कराने के भी निर्देश दिए गए हैं. साथ ही सभी स्वास्थ्य केन्द्रों से लू पीड़ितों की रिपोर्टिंगईमेल( ssobihar@gmail.com) पर भेजने के लिए आदेशित किया गया है. जिला के सिविल सर्जन डा. परमानन्द चौधरी ने बताया की दोपहर में घर से निकलने से बचना चहिए या अधिक धूप की स्थिति में छाता का उपयोग करना चहिये. लू लगने की स्थिति में चिकित्सकीय परामर्श जरुरी है. ऐसे प्राथमिक उपचार के तौर पर लू लगने पर ओआरएस का घोल पीना चाहिए ताकि अतिसार से बचा जा सके. इसके ईलाज के लिए जिले के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में पर्याप्त सुविधा भी उपलब्ध करायी गयी है. नवजात एवं बुजुर्गों को अधिक ख़तरा : महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन्स के मुताबिक लू का सबसे अधिक ख़तरा नवजात शिशुओं एवं 65 साल से अधिक बुजुर्गों में होता है. इसके अलावा गर्भवती महिलाएं एवं जटिल रोगों( मधुमेह, ह्रदय रोग, अतिसार जैसे अन्य रोग) से पीड़ित लोगों में भी लू का ख़तरा अधिक होता है एवं इससे अत्यधिक जटिल समस्याएं पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है. लू के लक्षण : अधिक गर्मी और शुष्क हवाओं को लू कहा जाता है. इनका तापमान सामान्य तापमान से अधिक होता है. तेज बुखार जिसमें शरीर का तापमान 104 डिग्री फारेनहाईट या इससे अधिक हो जाता है थकान, कमजोरी, चक्कर आना, बेहोश होना, सिर में तेज दर्द होना, खूब पसीना आना,उल्टी होना गाढे रंग का पेशाब, मांसपेशियों में ऐंठन एवं भ्रम पैदा होना लू से खतरा: अत्यधिक गर्मी एवं पसीना आने से शरीर से नमक एवं पानी का तेजी से ह्रास होता है. अपर्याप्त मात्रा में पानी एवं नमक सेवन से डिहाइड्रेशन एवं हाइपोनेट्रेमिया( नमक की कमी) हो जाती है जिससे शरीर में ऐंठन की शुरुआत होती है. शरीर का तापमान 40.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने यह कोशिका संरचनामें क्षति करने लगता है. इससे किडनी एवं लीवर फेलियर के साथ श्वसन एवं स्नायु संबंधित समस्याएं शुरू होती है एवं सही समय पर ईलाज के आभाव में यह जानलेवा हो जाता है. सुरक्षा के उपाय : कड़ी धूप में बाहर ना निकलें अधिक से अधिक बार पानी पीयें, प्यास नहीं भी लगे तो भी पानी पीयें 6 माह तक के नवजात को अधिक बार स्तनपान करायें तरल पदार्थ जैसे लस्सी, नामक-चीनी का घोल, छाछ, नींबू-पानी, आम का सरबत आदि का नियमित सेवन करें हल्का भोजन करें एवं तरबूज, खीरा, नींबू, संतरा आदि का सेवन करें अत्यधिक प्रोटीन युक्त भोजन जैसे मीट एवं मेवे के साथ चाय एवं कॉफ़ी आदि का सेवन ना करें बच्चों को धूप में बाहर नहीं निकलने दें एवं रात को खिड़कियाँ खुली रखें