सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेना के जवान केवल तभी विकलांग पेंशन के हकदार होंगे, जब सैन्य सेवा के कारण विकलांगता हुई हो या इस तरह की सेवा से और बढ़ गई हो और ऐसी स्थिति 20 प्रतिशत से अधिक हो।न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र की अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सेना के जवानों को विकलांगता पेंशन दी गई थी। सर्वोच्च अदालत ने अतिरिक्त सालिसिटर जनरल के एम नटराज की इस दलील से सहमति जताई कि सशस्त्र बलों के एक सदस्य को लगी चोटों और सैन्य सेवा के बीच उचित संबंध होना चाहिए। पीठ ने सैन्य कर्मी के छुट्टी स्टेशन पर पहुंचने के दो दिन बाद घायल होने के दावे को खारिज करते हुए कहा, 'जब तक विकलांगता सैन्य सेवा के कारण या बढ़ जाती है और 20 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब तक विकलांगता पेंशन का अधिकार नहीं बनता है।' कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में कर्मी के छुट्टी स्टेशन पर पहुंचने के दो दिन बाद वह एक सार्वजनिक सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। पीठ ने कहा, 'सैन्य सेवा और प्रतिवादी द्वारा लगी चोटों के बीच बिल्कुल कोई संबंध नहीं है। कोई कारण संबंध भी नहीं है। ट्रिब्यूनल ने इस पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है जो मामले की जड़ तक जाता है। इसलिए, प्रतिवादी विकलांगता पेंशन का हकदार नहीं है।विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।