भारत गंभीर भुखमरी और कुपोषण के से जूझ रहा है इस संबंध में पिछले सालों में अलग-अलग कई रिपोर्टें आई हैं जो भारत की गंभीर स्थिति को बताती है। भारत का यह हाल तब है जब कि देश में सरकार की तरफ से ही राशन मुफ्त या फिर कम दाम पर राशन दिया जाता है। उसके बाद भी भारत गरीबी और भुखमरी के मामले में पिछड़ता ही जा रहा है। ऐसे में सरकारी नीतियों में बदलाव की सख्त जरूरत है ताकि कोई भी बच्चा भूखा न सोए। आखिर बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं।स्तों क्या आपको भी लगता है कि सरकार की नीतियों से देश के चुनिंदा लोग ही फाएदा उठा रहे हैं, क्या आपको भी लगता है कि इन नीतियों में बदलाव की जरूरत है जिससे देश के किसी भी बच्चे को भूखा न सोना पड़े। किसी के व्यक्तिगत लालच पर कहीं तो रोक लगाई जानी चाहिए जिससे किसी की भी मानवीय गरिमा का शोषण न किया जा सके।

उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से शहनाज़ ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि राजनीति के अपराधीकरण को तब परिभाषित किया जाता है जब अपराधी सरकार में बने रहने के लिए राजनीति में भाग लेते हैं यानी चुनाव लड़ते हैं और संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए चुने जाते हैं । और यह खतरा समाज के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है , जो चुनावों में निष्पक्षता , कानून का पालन और एडीआर आंकड़ों की जवाबदेही जैसे लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को प्रभावित कर रहा है । के अनुसार , भारत में संसद के लिए चुने गए आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों की संख्या वर्ष दो हजार चार से बढ़ रही है ।

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से फकरुद्दीन मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की राजनीतिक चंदे दलों में यहाँ तक कि सरकारों में भी सरकार आम लोगों की आय का एक - एक पैसा देना चाहती है , लेकिन कोई भी राजनीतिक दलों के दान का हिसाब नहीं देना चाहता है । चुनावी बॉन्ड में राजनीतिक दान के बारे में सरकार ने कहा है कि यह पारदर्शी है और भ्रष्टाचार को समाप्त कर रही है , जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है । बॉन्ड कानून के तहत , दान करने वाला व्यक्ति या संस्था भुगतान के माध्यम से एस . बी . आई . के बॉन्ड विवरण खरीदती है और राजनीतिक दलों को दान करती है , लेकिन बैंक या ये राजनीतिक दल दान करते हैं । दानदाता का नाम अनिवार्य नहीं है , ऐसे में सरकार को आयकर रिटर्न के माध्यम से सब कुछ पता चल जाता है , लेकिन लोगों को नहीं पता कि किस पार्टी द्वारा किस उद्योगपति को कितना पैसा दिया गया है या इतनी बड़ी राशि में । पैसा लेकर पैसा देने वाले उद्योगपति के लिए वह सरकार कितना और कितना अच्छा करने जा रही है । कुल मिलाकर , कोई पारदर्शिता नहीं है । सरकार और राजनीतिक दलों ने पारदर्शिता के स्रोत के रूप में चुनावी बॉन्ड लगाए हैं । यह एक धुंधली गंदगी है । इसमें खुलेपन का कोई निशान भी नहीं है । सरकारें इस तरह के दान का समर्थन करती रही हैं ताकि सत्तारूढ़ दल को सबसे अधिक दान मिले । जाहिर है , सत्तारूढ़ दल को सबसे अधिक दान मिल रहा है । उच्चतम न्यायालय में महान्यायवादी द्वारा दिए गए तर्क अजीब हैं कि मतदाता को दान के बारे में सब कुछ जानने का अधिकार नहीं है । आखिरकार , यह किसका अधिकार है कि क्या मतदाता या आम नागरिक केवल अपना अमूल्य वोट देकर और राजनीतिक दलों के नेताओं को कुर्सियों पर बिठाकर सरकार बनाना चाहते हैं । कौन सी पार्टी किस उद्योगपति से लाभ उठाकर सत्ता में बैठती है ? यह जानना महत्वपूर्ण नहीं है कि क्या सभी सतर्कता और सभी गार्ड केवल आम आदमी पर लगाए गए हैं , आखिरकार , जिन्होंने सरकार को उनके बारे में सब कुछ जानने का अधिकार दिया और राजनीतिक दलों को सभी काम करने के लिए किसी भी आसमान से भूख क्यों लगी हुई है ।

उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से शहनाज़ ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि अपराध से देश के सभी राजनीतिक दल समाज से अपराध को खत्म करने का दावा करते हैं , कानून - व्यवस्था को मजबूत करने का दावा करते हैं । इस घटना की जड़ में विपक्ष को भी जंगल राज के बुनियादी परिणामों का सामना करना पड़ता है , लेकिन सत्तारूढ़ संसद में बैठे सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों दलों के कई नेताओं के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं , और इसके बाद हर साल की तरह , चुनावी सुधारों पर काम करने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने इस साल भी एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है ।

उत्तरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर से मेहताब आलम मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि चुनाव में सभी दल एकजुट हैं और हर कोई अपने लोगों को मूर्ख बना रहा है । इसे बनाने के लिए , मैं यह करूंगा , मैं वह करूंगा , मैं इसके लिए वोट मांगूंगा और एक - दूसरे से लड़ूंगा , लेकिन इसमें जनता को सोचना चाहिए और उस व्यक्ति को वोट देना चाहिए जो भविष्य में काम करेगा ।

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से सेहनाज़ मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही है की नेता चन्दा लेकर सत्ता में बैठते हैं। आखिरकार सवाल यह है कि किसे अधिकार है , चाहे वह मतदाता हो या आम नागरिक , केवल सरकार बनाने के लिए अपना कीमती वोट डालने और राजनीतिक दलों के नेताओं को कुर्सी पर बिठाने का । यह जानना महत्वपूर्ण नहीं है कि किसान का पैसा लेकर कौन सत्ता में बैठने वाला है , क्या यह सारी सतर्कता और सतर्कता केवल आम आदमी पर ही थोपी जाएगी

देश की राजनीति और चुनावों पर नजर रखने वाली गैर सरकारी संस्था एडीआर के अनुसार लगभग 40 फीसदी मौजूदा सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 25 फीसदी ने उनके खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा अपने शपथ पत्र में की है। सांसदों के आपराधिक रिकॉर्ड का विश्लेषण उनके ही द्वारा दायर किये शपथ पत्रों के आधार पर किया गया है। अगर संख्या के आधार पर देखा जाए तो मोजूदा संख्या 763 लोकसभा और राज्यसभा) में से 306 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जिनमें से 194 पर गंभीर आपराधिक मामले हैं जिसमें हत्या, लूट और रेप जैसे गंभीर मामले हैं। जिनमें अधिकतम सजा का प्रावधान किया गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से महताब अहमद मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की पक्ष और विपक्ष की चर्चा सबसे ज्यादा राजनीतिक सन्दर्भ में की जाती है। दोने पक्ष एक दूसरे की कमिया खोजते हैं

उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिला से सेहनाज़ मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि राजनीतिक दान पर दल और यहां तक कि सरकारें भी सब कुछ छिपाना चाहती हैं । सरकारें आम आदमी की आय का एक - एक पैसा देना चाहती हैं , लेकिन कोई भी राजनीतिक दलों के दान का हिसाब नहीं देना चाहता है । दलों के दान के बारे में जानने का अधिकार जनता को नहीं दिया जाता है , उदाहरण के लिए , यह कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद उन्नीस एएए के तहत कुछ भी और सब कुछ जानने का कोई सामान्य अधिकार नहीं है ।

एडीआर संस्था ने अपनी एक और रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में राजनीतिक पार्टियों की कमाई और खर्च का उल्लेख है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे राजनीतिक पार्टियां अपने विस्तार और सत्ता में बने रहने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सत्ता धारी दल ने बीते वित्तीय वर्ष में बेहिसाब कमाई की और इसी तरह खर्च भी किया। इस रिपोर्ट में 6 पार्टियों की आय और व्यय के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई एम और बीएसपी और एनपीईपी शामिल हैं। दोस्तों, *---- आपको क्या लगता है, कि चुनाव लडने पर केवल राजनीतिक दलों की महत्ता कितनी जरूरी है, या फिर आम आदमी की भूमिका भी इसमें होनी चाहिए? *---- चुनाव आयोग द्वारा लगाई गई खर्च की सीमा के दायेंरें में राजनीतिक दलों को भी लाना चाहिए? *---- सक्रिय लोकतंत्र में आम जनता को केवल वोट देने तक ही क्यों महदूद रखा जाए?